Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Parishad Publishing House

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Page 162
________________ ( १५३ ) "ला० इन्द्रराजजी ने एक प्रतिमा एक दुर्रानी जो काबुल का था उससे खरीदी उसने पाँच सौ रुपये कीमत मांगी चूंकि वह गरीब थे उन्होंने अपना तमाम सामान बेच कर वह प्रतिमा खरीद ली पहिले वह प्रतिमा अपने घर रखी फिर पंचों के सुपुर्द कर दी कि वह मन्दिर निर्माण करादें । दुर्रानी से जो प्रतिमा खरीदी थी वह सम्वत् १५४६ की थी।" (४) जैन धर्मशाला। (५) मुनि नमिसागर परमार्थ पवित्र औषधालय स्थापित सन् १६३१ । (६) जैन संस्कृत व्यापारिक विद्यालय (आठवीं कक्षा तक) रजिस्टर्ड स्थापित सन् १९११ । गली अनार (धर्मपुरा )- १) चैत्यालय वीवी तोखन सतघरा (धर्मपुरा)-(१) चैत्यालय मुंशी रिश्कलाल (२) मन्दिर ला० चन्दामल, स्त्री समाज शास्त्र सभा । (३) श्राविकाशाला। सतघरा बाहर (धर्मपुरा)-(१) मन्त्री हिसार पानीपत अग्रवाल दि० जैन पंचायत (हाउस नं० ६४८)। छत्ता शाहजी (चावड़ी बाजार)- १) अग्रवाल जैन औषधालय ला० अमरसिंह धूमीमल कागजी स्थापित सन् १९३६ नई सड़क--(१) भारतवर्षीय दि० जैन महासभा कार्यालय स्थापित सन् १८६४ (रजिस्टर्ड)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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