Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Parishad Publishing House

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Page 133
________________ ( १२६ ) यह सब ही मूर्तियां पुरातत्व एवं कला की दृष्टि से विशेष महत्व रखती हैं यहां भट्टारक कमलकीर्ति तथा पद्मकीर्ति के स्मारक वि० सं० १७१७ और १७३६ के हैं। बूढ़ी चन्देरी वर्तमान चन्देरी से ६ मील दूर बढ़ी चन्देरी है। मार्ग सुगम है। वहां पर अति प्राचीन अतिशय मनोज्ञ अष्ट प्रातिहार्ययक्त सैंकड़ों जिन बिम्ब हैं । कला एवं वीतरागता की दृष्टि से यह मूर्तियां अपना अद्वितीय स्थान रखती हैं. किन्हीं २ मूर्तियों की बनावट देख कर दाँतों तले उंगली दबानी पड़ती है । मन्दिरों की बनावट भी महत्वपूर्ण है। प्रत्येक मन्दिर की छत केवल एक पत्थर की बनी हुई है । कोई २ शिला का परिमाण २०० मन से भी अधिक है। इन मन्दिरों व मूर्तियों के निर्माण काल का तो कोई लिखित आधार उपलब्ध नहीं हुआ है, हां, यह अवश्य है कि ग्यारहवीं शताब्दी में प्रतिहार्य वंशीय राजा कीर्तिपाल ने इस चन्देरी को वीरान करके वर्तमान चन्देरी स्थापित की। इस क्षेत्र के जीर्णोद्धार का कार्य दि० जैन एसो० चन्देरी द्वारा सं० २००१ में प्रारम्भ हुआ। दो वर्ष में कोई शिला लेख प्राप्त नहीं हुआ । सैंकड़ों मूर्तियां जो यत्र तत्र बिखरी पड़ी थी अथवा भूमि के गर्भ में थी, पत्थरों एवं चट्टानों के नीचे दबी पड़ी थी उनको एकत्र करके संग्रहालय में रखा गया है । कई मन्दिरों का जीर्णोद्धार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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