________________
( १२८ )
अहारजी टीकमगढ़ से पूर्व की ओर १२ मील अहार नामक अतिशय क्षेत्र है । इस क्षेत्र के विषय में यह किम्वदन्ती प्रसिद्ध है कि पुराने जमाने में पाणाशाह नामक धनवान जैनी व्यापारी थे। उन्हें जिनदर्शन करके भोजन करने की प्रतिज्ञा थी । एक दिन वह उस तालाब के पास पहुँचे जहाँ आज अहार के मंदिर हैं। उस स्थान पर उन्होंने डेरा डाले; परन्तु जिनदर्शन न हुये। पाणाशाह उपवास करने को तैयार हुए कि इतने में एक मुनिराज का शुभागमन हुआ । सेठजी ने भक्ति पूर्वक उनको आहार देकर स्वयं आहार किया। इस अतिशयपूर्ण स्मृति को सुरक्षित रखने के लिये और स्थान की रमणीकता को पवित्र बनाने के लिये उन्होंने वहाँ जिनमंदिर निर्माण कराना निश्चित किया । इत्तफाक से वह जो रांगा भर कर लाये थे, वह भी चांदी हो गया । सेठजी ने यह चमत्कार देखकर उस सारी चांदी को यहां जिन‘मंदिर बनवाने में खर्च कर दिया। तभी से यह क्षेत्र आहारजी के नाम से प्रसिद्ध है । वैसे यहांपर दूसरी शताब्दि तक से शिला लेख बताये जाते है। मालूम होता है कि पाणाशाह जी ने पुरातन तीर्थ का जीर्णोद्धार करके इसकी प्रसिद्धि की थी । वर्तमान में यहां चार जिनालय अवशेष हैं । मुख्य जिनालय में १८ फीट ऊंची श्री शान्तिनाथजी की सौम्यमूर्ति विराजमान है। सं० १२३७ मगसिर सुदी ३ शुक्रवारको इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा गृहपतिवंश के
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com