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सुना था कि इस पर भी सीढ़ियाँ बनेंगी । टोंक के ऊपर एक काले पाषाण पर श्री नेमिनाथजी की दिगम्बर प्रतिमा और पास ही दूसरी शिला पर चरण चिन्ह हैं । सं० १२४४ का लेख है । कुछ लोगों का खयाल है कि यहीं से नेमिनाथ स्वामी मुक्त हुये थे और कुछ लोग कहते हैं कि पांचवीं टोंक से नेमिनाथ स्वामी मोक्ष गये - यह स्थान शंबु - प्रद्युम्न नामक यादवकुमारों का निर्वाण स्थान है । इस टोंक से नीचे उतर कर फिर पांचवीं टोंक पर जाना होता है । यह शिखिर सब से ऊँचा और अतीव सुन्दर है । इस पर से चहुँ ओर प्राकृत दृश्य नयनाभिराम दृष्टि पड़ता है । टोंक पर एक मठिया के नीचे नेमिनाथ स्वामी के चरण चिन्ह हैं; जिनके नीचे पास ही शिला भाग में उकेरी हुई एक प्राचीन दिगम्बर जैन पद्मासन मूर्ति है। यहां एक बड़ा भारी घंटा बंधा हुआ है । वैष्णव यात्री इसे गुरुदत्तात्रय का स्थान कह कर पूजते हैं और मुसलमान मदारशाद पीर का तकिया कह कर जियारत करते हैं। इस टोंक से ५-७ सीढ़ियाँ उतरने पर संवत् १९०८ का एक लेख मिलता है। नीचे उतर कर वापिस दूसरी टोंक तक आना होता है । यहाँ गोमुखी कुन्ड से दाहिनी ओर सहस्राम्रबन ( से सावन) को जाना होता है, जहाँ भ० नेमिनाथ ने वस्त्राभूषण त्यागकर दिगम्बरीय दीक्षा धारण की थी । यहाँ से नीचे धर्मशाला को जाते हैं । इस पर्वतराज से ७२ करोड़ मुनिजन मोक्ष पधारे हैं ।
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