________________
( १०८ )
पर के लेखोंसे स्पष्ट है कि सं० १६३३ फाल्गुण शुक्ल सप्तमी बुद्धवारको उन्हों ने तारंगाजी की यात्रा की थी। वे मूलसंघके आचार्य थे । मठिया के पास पहाड़ की खोह में क़रीब १|| हाथ ऊंचा एक स्तंभ पड़ा है, जिस पर प्राचीन चतुर्मुख दि० जैन प्रतिमा अंकित हैं । खड़गासन खंडित प्रतिमा भी पड़ीं हैं, जिन पर पुराने जमानेका लेप दर्शनीय है ऊपर पहाड़ की शिखिर पर एक छोटे से मंदिर में || गज ऊंची खड़गासन जिन प्रतिमा है और चार चरण चिन्ह विराजित हैं प्रतिमापर सं० १९२१ का मूलसंघी भट्टारक वीरकीर्तिका लेख है। चरणों के लेख पढ़ने में नहीं आते । यहाँ सबसे प्राचीन प्रतिमा श्रीवत्सचिन्ह अङ्कित सं० ११९२ बैशाख सुदी ६ रविवार की प्रतिष्ठित है । लेख में भ०
कीर्ति और प्रावाकुल के प्रतिष्ठाकारकजी के नाम भी हैं । यहां की वंदना करके दूसरी ओर एक मील ऊची 'सिद्ध शिला' नाम की पहाड़ी है । इस के मार्ग में एक प्राकृतिक गुफा बड़ी ही सुन्दर और शीतल मिलती है । ऊपर पर्वत पर दो टोंकें हैं । पहले श्री पार्श्वनाथ जी और कछुआ चिन्हवाली श्री मुनिसुव्रतनाथजी की सफेद पाषाण की खड़गासन जिन प्रतिमायें हैं । उनमें से एक परके लेख से स्पष्ट है कि सं०११६६ में बैशाख सुदी ६ रविवार को जब कि चक्रवर्ती सम्राट् जयसिंह शासनाधिकारी थे प्राग्वाट कुलके सा०लखन (लक्ष्मण) ने तारंगा पर्वत पर उस प्रतिबिंबकी प्रतिष्ठा कराई थी । दूसरी टोंक पर भ० नेमिनाथ की पद्मासन हरित
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com