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हैं । यहाँ राज्य की इमारतें और प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय है । यहां से ४० मील दूर केशरियाजी तांगे में जावे ।
केशरियानाथ
नदी किनारे कंगूरदार कोट के भीतर प्राचीन मन्दिर और धर्मशालायें बनी हुई हैं। मूलनायक श्री आदिनाथजी की महामनोहर और अतिशययुक्त प्रतिमा है । यह मन्दिर ५२ देहरियों से युक्त, विशाल और लाखों रुपयों की लागत का है। मूलतः यहां पर दिगम्बर जैन भट्टारकों का अधिपत्य था और उन्हीं की बनवाई हुई अठारहवीं शताब्दि की मूर्तियां और भव्य इमारतें हैं । किन्तु आज कल जैन अजैन सब ही दर्शन पूजन करते हैं । यहाँ केशर खूब चढ़ाई जाती है। तीनों समय पूजा होती है । दूधका अभिषेक होता है। बड़े मन्दिर के सामने फाटक पर हाथी के ऊपर नाभिराजा और मरुदेवीजी की शोभनीय मूर्तियाँ बनी हैं। उनके दोनों ओर चरण है । मन्दिर के अन्दर आठ स्तम्भों का दालान है । उसके आगे जाकर सात फीट ऊंची श्याम वर्ण श्री आदिनाथजी की सुन्दर दिगम्बरी प्रतिमा विराजमान है । वेदी और शिखरों पर नकासी का काम दर्शनीय है । यहाँ
एक मील दूर भगवान् की चरणपादुकायें हैं। वहीं से धूलिया मील के स्वप्न के अनुसार यह प्रतिमा जमींन से निकालीं थीं । धूलिया भील के नाम के कारण ही यह गांव घुलेब कहलाता है
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