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( १०७ ) गिरिनार से उत्तर-पश्चिम की ओर से २० मील दूर ढंक नामक स्थान है जहाँ काठियावाड़ में सब प्राचीन दिगम्बर जैन प्रतिमायें दर्शनीय हैं । जनागढ़ से जेतलसर-महसाना होते हुये तारंगाहिल जाना चाहिये।
तारंगाजी तारंगा बड़ा ही सुन्दर निर्जन एकान्त स्थान है। स्टेशन से पर्वत करीब तीन-चार मील दूर है। इस पवित्र स्थान से वरदत्त वरंगसागरदत्तादि साढ़े तीन करोड़ मुनिराज मुक्त हुये हैं । एक कोट के भीतर मंदिर और धर्मशाला बने हुये हैं; परन्तु स्टेशन की धर्मशाला में ठहरना सुविधा जनक है । पर्वत पर धर्मशाला के पास ही १३ दिगम्बर जैन मन्दिर प्राचीन हैं, जिसमें कई वेदियों में ऊपर-नीचे दि० जैन प्रतिमायें विराजमान हैं। यहाँ पर सहस्रकूट जिनालय में ५२ चैत्यालयों की रचना अत्यन्त मनोहर है। यहाँ एक मंदिर में श्रीसंभवनाथजीको अत्यन्त प्राचीन प्रतिमा महा मनोज्ञ है । यहीं पास में श्वेताम्बरीय मंदिर दर्शनीय है। इसे कई लाख रुपयोंकी लागतसे सम्राट् कुमारपालने बनवाया था । धर्मशाला से संभवतः उत्तर की ओर एक छोटा-सा पहाड़ है, जिसे 'कोटिशिला' कहते हैं । मार्ग में दाहिनी ओर दो छोटीसी मठियां हैं, जिनमें से एक में भट्टारक रामकीर्ति के और दूसरी में उनमें शिष्य भट्टारक पननंदि के चरण चिन्ह हैं । चरणचिन्हों
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