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( १७ ) जीर्णोद्धार स. १६३७ में परंडाके सेठ गणेश गिरधरजी ने कराया था । तभी को प्रतिष्ठित श्री सुपार्श्वनाथजी प्रभृति तीर्थङ्करों की पांच छै प्रतिमायें हैं । पार्श्वनाथजी की एक प्रतिमा सं० १५४८ की है । शेष प्रतिमायें भ० वादीभषण द्वारा प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिर के सामने श्रीलवकुश महामुनि की चरणपादुकाये (सं० १३३७ ) एक गुमटी में बनी हुई हैं । उनके सम्मुख एक दूसरा मदिर फिर से बन रहा है। इनके आगे सीड़ियों को चढ़ाई है, जिनकी दोनों तरफ दि० जैन प्रतिमायें लगी हुई हैं। चोटी पर कालिकादेवी का मंदिर है, जिसे हिन्दू पूजते हैं । इन्हीं सोड़ियों से एक तरफ थोड़ा चलने पर पहाड़ की नोक आती है । यही लव-कुशजी का निर्वाण स्थान है । वापस बड़ौदा आकर अहमदावाद जावे ।
अहमदाबाद अहमदाबाद गुजरात प्रान्त का खास शहर है । प्राचीन काल से जैन केन्द्र रहा है । पहले वह असावल कहलाता था; परन्तु अहमदशाह (सन् १४४२ ई०) ने उसे नये सिरेसे बसाया और उसका नाम अहमदाबाद रक्खा । स्टेशन से डेढ मील दूर चौक बाजार में त्रिपोल दरवाजे के पास स्व० सेठ माणिकचन्द्र जी द्वारा स्थापित प्रसिद्ध प्रे० दि० जैन बोर्डिङ्गहौस है। वहीं एक दि० जैन धर्मशाला व दो प्राचीन दि. जैन मन्दिर हैं।
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