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सिरे पर ब्रह्मदेव को मूर्ति है। गंगवंशीय राजा मारसिंह द्वि० का स्मारकरूप एक लेख भी इस पर खुदा हुआ है । इसी स्तम्भ के पास कई प्राचीन शिलालेख चट्टान पर खुदे हुये हैं । नं० ३१ वाजा शिलालेख क़रीब ६५० ई० का है और स्पष्ट बताता है कि "भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त दो महान् मुनि हुए जिनकी कृपादृष्टि से जैनमत उन्नत दशा को प्राप्त हुआ ।"
उपर्युक्त मानस्तंभ से पश्चिम की ओर सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ का एक छोटा मंदिर है, परन्तु उसमें एक महामनोज्ञ ग्यारह फीट ऊँची शान्तिनाथ भगवान् की खड्गासन मूर्ति दर्शनीय है । उनकी साभिषेक पूजा करके हमें अपूर्व शान्ति और
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आत्माल्हाद प्राप्त हुआ था ! इस मंदिर के उत्तर में खुली जगह में भरत की अपूर्ण मूर्ति खड़ी है। पूर्व दिशा में 'महानवमी - मंडप' है, जिसके स्तंभ दर्शनीय हैं। एक स्तंभ पर मंत्री नागदेव ने सन् ११७६ ई० में नयकीर्ति नामक मुनिराज की स्मृति में लेख खुदवाया है । यहाँ से पूर्व की ओर श्री पार्श्वनाथजी का बहुत बड़ा मंदिर है । इसके सामने एक मानस्तंभ है । मंदिर उत्कृष्ट शिल्पकला का सुन्दर नमूना है । इसी के पास सबसे बड़ा और विशाल मंदिर ' कत्तले - बस्ती नामक मौजूद है । इसे सम्राट् विष्णुवर्द्धन के सेनापति गंगराज ने बनवाया था। इसमें श्री आदिनाथ भगवान् की मूर्ति 1 विराजमान है । यहाँ यही एक मंदिर है जिसमें प्रदक्षिणार्थ
मार्ग बना हुआ है ।
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