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धर्मस्थल, आदि स्थान भी दर्शनीय हैं । इन स्थानों के दर्शन करके हुबली आजावे।
हुबली-आरटाल
हुबली जंकरान के पास ही धर्मशाला में जिनमंदिर है, वहां दर्शन करे । शहर में भी पाँच मंदिर दर्शनीय हैं । चाँदी की
और चौबीस तीर्थङ्करों की प्रतिमायें मनोज्ञ हैं। किला महल्लेका मंदिर प्राचीन है । हुबली से २४ मील नैऋत्य कोन में आरटाल क्षेत्र है। घोडागाड़ी जाती है। पाषाण का विशाल मंदिर दर्शनीय है, जिसमें पार्श्वनाथजी की बहदाकार कायोत्सर्ग प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर को चालुक्यकाल में मुनि कनकचंद्र के उपदेश से बोभ्मसेट्टिने निर्माण कराया था। वहाँ से वापस हुबली आवे । हुबली से शोलापुर जावे, जहाँ पाँच दि० जैन मंदिरों और बोर्डिगहौस एवं श्राविकाश्रम आदि संस्थाओं के दर्शन करके लारी में कुंथलगिरि के दर्शन करने जावे ।
कुंथलगिरि
कुंथलगिरि पर्वत से श्री कुलभूषण और देशभषण मुनि मोक्ष गये हैं । पर्वत छोटा-सा अत्यन्त रमणीक है । उसकी चोटी तथा मध्य में मुनियों के चरणमंदिर सहित दस मंदिर बने हैं । प्रकृति सौन्दर्य अपूर्व है। माघमास में मेला होता है।
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