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लखनऊ लखनऊ का प्राचीन नाम लक्ष्मणपुर है । स्टेशन के पास श्री मुन्नेलालजी की धर्मशाला है । यहां कुल ६ मन्दिर हैं, जिनके दर्शन करना चाहिये । यहां कई स्थान देखने योग्य हैं । कैसर बाग़ में प्रान्तीय म्यूजियम में कई सौ दिगम्बर जैन मूर्तियों का संग्रह दर्शनीय है । जैनमूर्तियों का ऐसा संग्रह शायद ही अन्यत्र कहीं हो ! लखनऊ से फैजाबाद जावे और जैन धर्मशाला में ठहरे । यहां से ४ मील इक्के या तांगे में अयोध्या जावे ।
अयोध्या अयोध्या जैनियों का आदि नगर और आदि तीर्थ है । यहीं पर आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेवजी के गर्भ व जन्म कल्याणक हुये थे। यहीं पर उन्होंने कर्मभमि की आदि में सभ्य और सुसंस्कृत जीवन बिताना सिखाया था-मनुष्यों को कर्मवीर बनने का पाठ सबसे पहले यहीं पढ़ाया गयाथा । राजत्व की पुण्यप्रतिष्ठा भी सबसे पहले यहीं हुई थी। गर्ज यह है कि धर्म-कर्म का पुण्यमई लीलाक्षेत्र अयोध्या ही है । इस पुनीत तीर्थ के दर्शन करने से मनुष्य में कर्म वीरता का संचार और त्यागवीरता का भाव जागृत होना चाहिये । केवल ऋषभदेव ही नहीं बल्कि द्वितीय तीर्थकर श्री अजितनाथ, चौथे तीर्थङ्कर श्री अभिनन्दननाथ पांचवे तीर्थङ्कर श्री सुमतिनाथजी और १४ वे तीर्थङ्कर श्री अनन्तनाथजी का जन्म भी यहां ही हुआ था । जिन्होंने महान राज-ऐश्वर्य को त्याग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com