________________
( ५६ ) इस पर्वत पर से ही भगवान महावीर ने आकर ओड़ीसा निवासियों को अपनी अमतवाणी का रस पिलाया था । अन्तिम तीर्थंकर का समवशरण आने के कारण यह स्थान अतिशयक्षेत्र है । उदयगिरि ११० फीट ऊंचा है। इसके कटिस्थान में पत्थरों को काटकर कई गुफायें और मंदिर बनाये गये हैं । पहले 'अलकापुरी' गुफा मिलती है, जिसके द्वार पर हाथियों के चिन्ह बने हैं, फिर 'जयविजय' गुफा है, उसके द्वार पर इन्द्र बने हैं
आगे 'रानीनद' नामक गुफा है, जो दो खन की है। इस गुफामें नीचे ऊपर बहुत-सी ध्यानयोग्य अंतर गुफाये हैं । आगे चलने पर 'गणेशगुफा' मिलती है, जिसके बाहर पाषाणके दो बड़े हाथी बने हुये हैं । यहाँसे लौटनेपर 'स्वर्गगुफा'-'मध्यगुफा और 'पातालगुफा नामक गुफायें मिलती हैं । इन गुफाओं में चित्र भी बने हुये हैं
और तीर्थंकरों की प्रतिमायें भी हैं। पातालगुफा के ऊपर 'हाथीगुफा' १५ गज पश्चिमोत्तर है। यह वही प्रमुखगुफा है जो जैन सम्राट् खारवेल के शिलालेख के कारण प्रसिद्ध है । खारवेल कलिंग देश के चक्रवर्ती राजा थे-उन्होंने भारतवर्ष की दिग्विजय की थी और मगध के राजा वृहस्पतिमित्र को परास्त करके वह छत्र-भृङ्गारादि चीज़ों के साथ 'कलिङ्ग जिन ऋषभदेव' की वह प्राचीन मूर्ति वापस कलिङ्ग लाये थे, जिसे नन्द सम्राट् पाटलिपुत्र लेगये थे। इस प्राचीन मूर्ति को सम्राट् खारवेल ने कुमारी पर्वतपर अर्हतप्रासाद बनवाकर विराजमान किया था । उन्होंने स्वयं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com