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. ( ६५ ) बलि ( गोम्मट ) स्वामी की विशालकाय मूर्ति विराजमान है। इस घेरे के बाहर भव्य संगतराशीका त्यागद् ब्रह्मदेव-स्तम्भ' नामक सुन्दर स्तम्भ छत से अधर लटका हुआ है । इसे गंगवंश के राचमल्लनरेश के राजमंत्री सेनापति चामुंडराय ने बनवाया था, जो श्री 'गोम्मटसार' के रचयिता श्री नेमिचंद्राचार्य के शिष्य थे । गुरु और शिष्य की मूर्तियां भी उस पर अङ्कित हैं। इस स्थंभ के सामने ही गोम्मटेश-मूर्ति के आकार में घुसने का अखंड द्वार है-वह एक शिलाखंड का बना हुआ है। इसद्वारकी दाहिनी ओर बाहुबलिजी का छोटा-सा मंदिर और बाई ओर उनके बड़े भाई भरत म० का मन्दिर है। पास वाले चट्टान पर सिद्ध भ० की मूर्तियां हैं और वहीं 'सिद्धरवस्ती' है; जिसके पास दो सुन्दर स्तंभ हैं। वहीं पर 'ब्रह्मदेवस्तंभ' है और गुल्लकायिजी की मूर्ति है। चामुंडरायजीके समयमें गुल्लकायिजी धर्मवत्सला महिला थीं, लोकश्रुति है कि चामुंडराय ने बड़े सजधज से गोम्मटस्वामी के अभिषेक की तैयारी की. परन्तु अभिषिक्त दूध जांघों के नीचे नहीं उतरा, क्योंकि चामुंडरायजी को थोड़ा-सा अभिमान होगया था। एक बृद्धा भक्तिन गोल्लकायि-फल में दूध भर कर लाई और भक्तिपूर्वक अभिषेक किया तो वह सर्वाङ्ग सम्पन्न हुआ। चामुंडरायजी ने उसकी भक्ति चिरस्थायी बनादी।
श्री बाहुबलिजी श्री तीर्थकर ऋषभदेव जी के पुत्र और भरतचक्रवर्ती के भाई थे। राज्य के लिये दोनों भाइयों में युद्ध हुआ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com