Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1917 Book 13
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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Armaan
૫૮
શ્રી જેને કવે. ક. હેરેલ. જુદી જુદી રીતે આ નિબંધમાં વિસ્તારથી આવી જાય છે તેથી અહીં તેનું પુનઃ કથન કરવાની જરૂર નથી.
* * આ સર્વ જૈન દર્શનનો સંક્ષિપ્ત ઇતિહાસ, તેના સિદ્ધાંતો અને તેની વૈદિક દર્શને તુલના એ પારિતોષિક નિબંધને એક ભાગ છે. આ નિબંધ એક વર્ષ થયાં અપકટ પડી રહ્યા છે. તેમાં અનેક જાણવા પેગ બાબત છે.
तंत्री.
जैनों में नाच की प्रथा। नाच की ओर से अंगरेजी पढे लिखे तो उदासीन थे ही। परन्तु दूसरे लोगों को भी इस से पूरी २ घृणा हो चुकी है । नाच कराना तो दूर रहा अथ देखना भी एक प्रकार से निन्दनीय कार्य समझा जाता है। दिल्ली के अग्रवाल वैश्यों में कभी से नाच बन्द है परन्तु जैन भाइयों में अभी तक भी इस कुपृथा ने घर किया हुआ है । क्योंकि दिल्ली में कुछ जैन भाई नाच के भारी पक्षपाती है । और वह यहां तक साहस करने से भी नहीं चुकतें कि यदि मालिक की मरजी न हो तो भी जबरदस्ती से उनके मकान पर किसी रंडी को लाकर खड़ा कर दिया जाता है । हाल ही में यहां के प्रसिद्ध व्यापारी लाला खैरातीलाल के पुत्र का शुभ वि. वाह था । आप श्रीमाल जैन जाति से सम्बन्ध रखते है। इसी से आप के एक मित्र लाला भोलानाथ ने जबरदस्ती से सगाई के दिन एक रंडी खड़ी कर दी। इस पर दूसरे लोगों ने आपत्ति को जिस पर लाला खैराती लाल ने अपने को निरपराध बताते हुए इस करतूत के हर्ता कर्ता की और संकेत किया यह सब कुछ हो जाने पर भी भोजके समय फिर वही नाच रंग की महफिल जमा कर मायः लोगों ने अमने हृदय का परिचय दे डाला। और लाला. खेराती. लाल जी दबी जवान से नाच का जो विरोध कर रहे थे खुल कर उस कार्य में भाग लेने लगे। यहां तक कि जिस रोज अन्य जाति के लोगों की दावत थी। उस दिन के लिए विशेष प्रकार से मेरठ की एक गणिका को निमन्त्रित किया गया था।
इस पर फिर झगड़ा उठा और अंत को उसे मेरठ में रोकने की योजना की गई । परन्तु रण्डी ने भी आदमी भेज कर पता लगाया कि क्या माजरा है। यहां दूसरी रंडी का नाच हो रहा था यह खबर पाते ही मेरठ की रण्डी भी आ गयी अस्तु इस नाच के कारण कितने बखेडों में लाला खैरातीलालको पड़ना पड़ा