Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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१२ : जैन पुराणकोश
छठा नारायण कहा है। मपु० ७६.४८७-४८८, हपु० ६०.५६६
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(५) साकेत नगर का राजा। इसकी रानी श्रीमती और पुत्री हिरण्यवती थी। पूर्वभव में यह मृगायण नाम का ब्राह्मण था। हपु० २७.६१-६३
(६) विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित धरणी तिलक नगर का राजा। इसकी रानी सुलक्षणा और पुत्री श्रीधरा थी। हपु० २७.७७-७८
(७) पुण्डरोकिणी नगरी के राजा धनंजय और उसकी रानी यशस्वती का पुत्र । मपु० ७.८१-८२
(८) हरिविक्रम नामक भीलराज का सेवक । मपु० ७५.४७८४८१
(९) इस नाम का एक असुर । मपु० ६३.१३५-१३६ (१०) विजयार्द्ध पर्वत स्थित अलकापुरी का खगेन्द्र। इसकी रानी मनोहरा और पुत्र महाबल था। जीवन, यौवन और लक्ष्मी को क्षणभंगुर जानकर इसने अभिषेक पूर्वक समस्त राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और दीक्षा ग्रहण कर ली थी। यह वृषभदेव के दसवें पूर्वभव का जीव था। मपु० ४.१०४, १२२, १३१-१३३, १४४१५२, ५.२००
(११) अतिबल का नाती और महाबल का पुत्र । मपु० ५.२२६२२८ अतिबेलम्ब-मानुषोत्तर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम कोण के बेलम्ब नामक कूट का निवासी वरुणकुमारों का अधिपति देव । हपु० ५.६०९ दे०
मानुषोत्तर अतिभारारोपण-अहिंसाणुव्रत के पाँच अतिचारों में चौथा अतिचार
अधिक भार लादना । हपु० ५८.१६४ दे. अहिंसाणुव्रत अतिभूति-दारुग्राम के निवासी विमुचि ब्राह्मण तथा उसकी भार्या
अनुकोशा का पत्र । यह हिंसा का समर्थक तथा मुनिद्वेषी था। इसलिए दुर्ध्यान से मरकर दुर्गति को प्राप्त हुआ था। यही आगामी
भव में सीता का भाई भामण्डल हुआ। पपु० ३०.११६-१३५ अतिमुक्त-इस नाम के एक मुनि । ये भिक्षा के लिए कंस के यहाँ आये
थे। उसकी पत्नी जीवद्यशा ने इन्हें देवकी का ऋतुकाल सम्बन्धी बस्त्र दिखाया था जिससे कुपित होकर इन्होंने जीवद्यशा से कहा था कि देवकी का पुत्र तेरे पति और पुत्र दोनों को मारेगा । वसुदेव और देवकी से इन्होंने भविष्यवाणी की थी कि उनके सात पुत्र होंगे जिनमें छः निर्वाण प्राप्त करेंगे और सातवां अर्ध चक्रवर्ती होकर पृथिवी का पालन करेगा । इनका अपरानाम अतिमुक्तक था। मपु० ७०.३७०
३८३, हपु० ३३.३२-३६, ९३-९४ अतिमुक्तक-(१) उज्जयिनी नगरी एक श्मसान । तीर्थकर वर्धमान के ।
धैर्य की परीक्षा के लिए रुद्र ने उन पर यहीं अनेक उपसर्ग किये थे किन्तु वह उनको ध्यान से विचलित नहीं कर सका था। अन्त में रुद्र ने वर्धमान को महति और महावीर ये दो नाम दिये और उनकी
अतिबेलम्ब-अतिवेग अनेक प्रकार से स्तुति की। मप् ७४.३३१-३३७, वीवच० १३.५९-७२
(२) एक मुनि । अपरनाम अतिमुक्त । हपु० १.८९ दे० अतिमुक्त अतिरथ-(१) धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व मेरु पर्वत से पूर्व की ओर स्थित विदेह क्षेत्र में पुष्पकलावती देश की पुण्डरी किणी नगरी के राजा रतिषेण का पुत्र । रतिषेण ने इसे ही राज्यभार सौंपकर दीक्षा ग्रहण की थी । मपु० ५१.२-३, १२
(२) एक प्रकार के योद्धा । ये रथ में बैठे हुए युद्ध करते हैं । यादवों में नेमि, बलदेव और कृष्ण तीनों ऐसे हो योद्धा थे। हपु० ५०.७७ अतिरूपक-देवरमण वन का एक व्यन्तरदेव । सुरूप नामक देव और
यह दोनों इसी वन में उत्पन्न हुए थे। पूर्व जन्म में दोनों गीध और कबूतर थे। दोनों ने मुनि मेघरथ से दान और उसके पात्र का स्वरूप भली प्रकार समझा था इसलिए अन्त में देह त्यागकर ये दोनों देव हुए थे। मपु० ६३.२७६-२७८ अतिरूपा-एक देवी। ईशानेन्द्र से मुनि मेघरथ के सम्यक्त्व की प्रशंसा
सुनकर सुरूपा नाम की एक अन्य देवी के साथ यह उनकी परीक्षा करने के भाव से उनके निकट आयी थी। इसने विलास, विभ्रम, हाव-भाव, गति, बातचीत तथा कामोन्मादक अन्य उपायों से मुनि मेघरथ को विचलित करने का प्रयत्न किया किन्तु यह उन्हें सम्यक्त्व से विचलित नहीं कर सकी। अन्त में इन्द्र का कथन सत्य है-ऐसा
कहती हुई यह स्वर्ग लौट गयी । मपु० ६३.२८५-२८७ अतिविजय-राम का एक योद्धा । पपु० ५८.१६-१७ अतिवीर्य-(१) भरत चक्रवर्ती का पुत्र । यह भरत के सेनापति जयकुमार के साथ दीक्षित हो गया था। मपु० ४७.२८१-२८३
(२) आदित्यवंशी राजा प्रतापवान् का पुत्र और सुवीर्य का जनक । हपु० १३.९-१०
(३) नन्द्यावर्तपुर का राजा। इसकी रानी का नाम अरविन्दा, पुत्र का नाम विजयरथ और पुत्री का नाम रतिमाला था। इसने विजय नगर के राजा पृथिवीधर को पत्र भेजकर राम और लक्ष्मण के वन जाने के पश्चात् अयोध्या के राजा भरत पर आक्रमण किया था । इस आक्रमण की सूचना पाकर राम और लक्ष्मण ने इसे अपनी सूझ-बूझ से जीवित पकड़ लिया। लक्ष्मण ने इसे मार डालना चाहा किन्तु सीता ने उन्हें इसका वध नहीं करने दिया। अन्त में राम ने भरत का आज्ञाकारी होकर नन्द्यावर्त नगर में इच्छानुसार राज्य करने की इसे अनुमति दे दी किन्तु "मुझे राज्य का फल मिल गया" ऐसा कहते हुए इसने श्रुतिधर मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली । पपु०
३७.६-९, २६-२७, १२७-१६४, ३८.१-२ अतिवेग-धरणीतिलक नगर का राजा। इसकी रानी का नाम प्रिय
कारिणी और पुत्री का नाम रत्नमाला था। इसने पुत्री का विवाह जम्बूद्वीप के चक्रपुर नगर में वहाँ के राजा अपराजित और रानी चित्रमाला के पुत्र वज्जायुध से किया था। इस राजा की दूसरी रानी का नाम सुलक्षणा था। इन दोनों की एक श्रीधरा नाम की पुत्री थी जिसका
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