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के सम्बन्ध में ऐसा होने से उसका प्रभाव सर्व समाज पर पड़ता है । इसी प्रकार की और भी हानियाँ है जो उसी समय दूर हो सकेंगी जब जैन-लॉ स्वतन्त्रता को प्राप्त हो जायगा ।
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कुछ व्यक्तियों का विचार है कि जैन-धर्म हिन्दू-धर्म की शाखा है। और जैन-नीति भी वही है जो हिन्दुओं की नीति है । यह लोग जैनियों को धर्म-विमुख हिन्दू ( Hindu dissenters ) मानते हैं । परन्तु वास्तविकता सर्वथा इसके विपरीत है । यह सत्य है कि हिन्दू-लॉ और जैन-लॉ में अधिक समानता है तो भी यदि आयों का स्वतन्त्र कानून कोई हो सकता है तो जैन-लॉ ही हो सकता है कारण कि हिन्दू-धर्म जैन-धर्म का स्रोत किसी प्रकार से नहीं हो सकता वरन् इसके विरुद्ध जैन-धर्म हिन्दू-धर्म का सम्भवत: मूल हो सकता है । क्योंकि हिन्दू-धर्म और जैन धर्म में ठीक वही सम्बन्ध पाया जाता है जो विज्ञान और काव्य-रचना में हुआ करता है एक वैज्ञानिक है दूसरा अलङ्कारयुक्त । इसमें से पहिला कौन हो सकता है और पिछला कौन इसका उत्तर टामस कारलाइल के कथनानुसार यों दिया जा सकता है कि विज्ञान ( science ) का सद्भाव काव्य-रचना ( allegory ) से पूर्व होता है। भावार्थ, पहिले विज्ञान होता है और पीछे काव्य-रचना* ।
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जैनी लोग धर्म- विमुख हिन्दू ( Hindu dissenters ) नहीं हो सकते हैं । जब एक धर्म दूसरे धर्म से पृथकू होकर निक
* देखा रचयिता की बनाई हुई निम्न पुस्तकें -
१ की ऑफ नॉलेज ( Key of Knowledge ) २ प्रक्टिल पाथ (Practical Path), ३ कोनफ्लाएन्स आफ श्रोपोज़िटस (Confiuence of Opposites ch. IX) और हिन्दू उदासीन साधु शङ्कराचार्य की रचित श्रात्मरामायण तथा हिन्दू पांण्डत के० नारायण श्राइर की रचित परमनेन्ट हिस्ट्री आफू भारतवर्ष ( Permanent History of Bharatvarsha )।
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