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द्वितीय परिच्छेद
विवाह पुरुष को ऐसी कन्या से विवाह करना चाहिए जो उसके गोत्र की न हो वरन् किसी अन्य गोत्र की हो परन्तु उस पुरुष की जाति की हो और जो आरोग्य, विद्यावती, शीलवती हो और उत्तम गुणों से सम्पन्न हो (१)। वर भी बुद्धिमान, आरोग्य, उच्च कुलीन, रूपवान् और सदाचारी होना चाहिए (२)। जिस कन्या की जन्मराशि पति की जन्मराशि से छठी या आठवीं न पड़ती हो ऐसी कन्या वरने योग्य है (३)। उसको पति के वर्ण से विभिन्न वर्ण की नहीं होना चाहिए (४)। कन्या रूपवती हो तथा प्रायु और डोलडौल में वर से न्यून हो (४)। परन्तु यह कोई आवश्यक नियम नहीं है। गोत्र के विषय में नियम प्रतिबन्धक ( लाज़िमी ) है (५)। बुआ की लड़की, मामा की लड़की और साली के साथ विवाह करने में दोष नहीं है (६)। परन्तु ऐसा बहुत कम होता है और इस विषय में स्थानीय रिवाज का ध्यान रखना होगा (७)। (१) वर्णाचार अध्याय ११ श्लोक ३ ।
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(५) (६)
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" ३६, ४०।
" ३८, १७५ । "
" । " ११-३७, सोमदेव नीति ( देश कालापेक्षो
मातुल सम्बन्धः)।
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