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भाग में मैं रहूँगा, और इस घर में तुम रहो" ऐसा भाइयों को प्रबन्ध कर लेना चाहिए ।। १६ ।।
सर्वेपि भ्रातरो ज्येष्ठं विभक्ताजङ्गमा तथा । किञ्चिदंश च ज्येष्ठाय दत्तवा कुर्युः समांशकम् ।। १७ ॥
अर्थ-सब भाई अपने बड़े भाई को पहिले अविभक्त जङ्गम द्रव्य में से कुछ अंश देकर फिर शेष सम्पत्ति को सब मिल कर बराबरबराबर बाँट लें ॥१७॥
गोधनं तु समं भक्त्वा गृह्णोयुस्ते निजेच्छया। कश्चिद्धतुं न शक्तश्चेदन्यो गृह्णात्यसंशयम् ।। १८॥
अर्थ-गोधन ( अर्थात् गाय महिषादि जानवरों) को अपनेअपने इच्छानुसार बराबर भाग करके ले लें, और यदि भागाधिकारियों में से कोई धारण करने में समर्थ न हो तो उस गोधन को दूसरा भागी बेखटके ग्रहण कर ले ॥ १८ ॥
भ्रातृणां यदि कन्या स्यादेका बह्वमः सहोदरैः।। खांशात्सर्वैस्तुरीयांशमेकीकृत्य विवाह्यते ।। १६ ।।
अर्थ-यदि भाइयों की सहोदरी एक अथवा बहुत सी कन्या हों तो सब भाइयों को अपने-अपने भाग में से चौथा-चौथा भाग एकत्र करके कन्याओं का विवाह कर देना चाहिए ॥ १६ !!
ऊढायास्तु न भागोऽस्ति किञ्चिद् भ्रातृसमक्षतः । विवाहकाले यत्पित्रा दत्तं तस्यास्तदेव हि ।। २ ।।
अर्थ--भाइयों के समक्ष विवाहिता कन्या का पिता की सम्पत्ति . में कुछ भी भाग नहीं है। विवाहकाल में पिता ने उसे जो दे दिया हो वही उसका है ॥ २० ॥
सहोदरैर्निजाम्बाया भागस्सम उदाहृतः । साधिको व्यवहारार्थ मृतौ सर्वेऽशभागिनः ॥२१॥
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