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चतुर्थाशं प्रदाप्यैव भिन्नः कार्योऽन्यसाक्षितः । प्रागेवोष्णीषबन्धे तु जातोऽपि समभागयुक ॥ ६ ॥ ( देखो भद्रबाहुसंहिता श्लो० ६३-६४)॥५-६ ।। असंस्कृतं तु संस्कृत्य भ्रातरो भ्रातरं पुनः । शेष विभज्य गृह्णोयुः समं तत्पैतृकं धनम् ॥ ७ ॥
अर्थ-भाइयों में जो भाई अविवाहित हो उसका विवाह करके पीछे अवशिष्ट धन का सब भाई समान भाग कर लें ।। ७ ।।
पित्रोरूर्व भ्रातरस्ते समेत्य वसु पैतृकम् । विभजेरन्समं सर्व जीवतो पितुरिच्छया ।। ८ ॥ ( देवो भद्रबाहुसंहिता श्लोक ४) ८॥ अनूढा यदि कन्या स्यादेकाबह्वीः सहोदरैः । स्वांशात्सर्वे तुरीयांशमेकीकृत्वा विवाहयेत् ।।६।। ( देखा भद्रबाहुसंहिता श्लोक १६)।। ६ || सहोदरैर्निजांबाया भागः सम उदाहृतः । साधिकं व्यवहारार्थ मृतो सर्वेऽशभागिनः ।। १० ।। ( देखो भद्रबाहुसंहिता श्लोक २१ ) ॥ १० ॥ पत्नी पुत्री भ्रातृजार सपिण्डस्तत्सुतासुतः । बान्धवो गोत्रजा ज्ञात्या द्रव्येशा ह्युत्तरोत्तरम् ॥ ११ ॥ तदभावे नृपो द्रव्यं धर्मकार्ये प्रवर्तयेत् । निष्पुत्रस्य मृतस्यैव सर्ववणेष्वयं क्रमः ।। १२ ॥
अर्थ-कोई पुरुष मर जाय तो उसके धन के मालिक इस क्रम से होते हैं, स्त्री, पुत्र, भतीजा, सपिण्ड, पुत्रो का पुत्र, बन्धु, गोत्रज, ज्ञात्या। इन सबके अभाव में राजा उस धन को धर्म-कार्य में लगा दे। यह नियम सब वर्षों के लिए है ॥ ११-१२ ।।
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