________________
अर्थ-जो बालक उत्पन्न नहीं हुआ है तथा उत्पन्न हो गया है और जो बुद्धिरहित है अथवा जो उत्पन्न होकर मर गया है ( भावार्थ मृतक पुत्र की सन्तान ), ये सब अपनी-अपनी जीविका के लिए उस धन के उत्तराधिकारी हैं ॥ १० ॥
अप्राप्तव्यवहारेषु तेषु माता पिता तथा।। कार्ये त्वावश्यके कुर्यात्तस्य दानं च विक्रयम् ॥ ११ ॥
अर्थ-पुत्र रोज़गार न जानते हों ( भावार्थ नाबालिग हों) तो उनके माता-पिता किसी आवश्यकता के समय अपनी स्थावर वस्तु को बेच सकते हैं और पृथक कर सकते हैं ॥ ११ ॥
दुःखागारे हि संसारे पुत्रो विश्रामदायकः । यस्मादृते मनुष्याणां गार्हस्थ्यं च निरर्थकम् ॥ १२ ॥
अर्थ-दुःख के स्थान-रूपी इस संसार में पुत्र विश्राम को देनेवाला है। बिना पुत्र का घर निरर्थक है ॥ १२ ।।
यस्य पुण्यं बलिष्ठं स्यात्तस्य पुत्रा अनेकशः। संभूयैकत्र तिष्ठति पित्रोस्सेवासु तत्पराः ॥ १३ ॥
अर्थ-जिस मनुष्य का पुण्य बलवान है उसके बहुत पुत्र होते हैं, और सब आपस में शामिल रहकर सहर्ष माता-पिता की सेवा करते हैं ।। १३ ॥
लोभादिकारणाजाते कलौ तेषां परस्परम् । न्यायानुसारिभिः कार्या दायभागविचारणा ।। १४ ॥
अर्थ-यदि लोभ के कारण भाई-भाई में कलह उत्पन्न हो जाय तो द्रव्य की बाँट न्यायानुकूल करनी चाहिए ।। १४ ।।
पित्रोरूवं तु पुत्राणां भागः सम उदाहृतः । तयोरन्यतमे नूनं भवेद्भागस्तदिच्छया ।। १५ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org