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उपर्युक्त वाक्यों में पूर्ण उत्तर निम्न बातों का मिलता है
(१) परमात्मा महावीर मनोकाल्पनिक नहीं वरन् एक वास्तविक ऐतिहासिक व्यक्ति हुए हैं, और (२) वह बुद्ध के समकालीन थे। मेरी राय में इस बात के अप्रमाणित करने के लिए कि जैनियों ने अपने तत्त्व और धार्मिक आचार बौद्धों से लिये और जैन धर्म ईसा की छठी शताब्दी में उत्पन्न हुआ और वह हिन्दू और बौद्ध धर्म का समझौता है केवल इतना ही पर्याप्त है।
इस मत के सिद्ध करने के लिए कि जैनी हिन्दू धर्म के अन्तर्गत भिन्न श्रद्धानी ( डिस्सेंटर्ज़ ) हैं, न डाक्टर गौड़ ने, न और किसी ने नाम मात्र भी प्रमाण दिया है। यह केवल एक कल्पना ही है जो पुराने समय के योरोपीय लेखकों के आधार पर खड़ी की गई है जिनकी जानकारी धर्म के विषय में करीब करीब नहीं के बराबर ही थी और जिनके विचार वैदिक धर्म और अन्य भारतीय धर्मों के विषय में बच्चों और मूखों के से हास्योत्पादक हैं। यह सत्य है कि ऐतिहासिक पत्रों और शिलालेखों के अभाव में, जो सामान्यत: ईस्वी सन् के ३०० वर्ष से अधिक पहिले के नहीं मिलते हैं, कोई स्पष्ट साक्षो किसी ओर भी नहीं मिलती; किन्तु भिन्न धर्मों के वास्तविक सिद्धान्तों और तत्त्वों की अन्तर्गत साक्षी इस विषय में पूर्ण प्रमाण रूप है। परन्तु प्रारंभ के अन्वेषकों को इस प्रकार के खोज की पथ-रेखा पर चलने की योग्यतान थी। और इस मार्ग को उन्होंने लिया भी नहीं। मैंने अपनी प्रेक्टीकल पाथ ( Practical Path) नामक पुस्तक के परिशिष्ट में, जो ५८ पृष्ठों में लिखा गया है, जैन और हिन्दू धर्म का वास्तविक सम्बन्ध प्रगट किया है और इसी विषय को अपनी की ऑफ़ नौलेज ( Key of Knowledge ) नाम को पुस्तक में ( देखो दूसरी प्रावृत्ति पृष्ठ १०६८ से १०६० ) और
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