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मतों के पूज्य ग्रन्थों से दृष्टांत ले लेकर दर्शा दिया है। दुर्भाग्यवश एल्फिन्स्टन को स्वपरधर्म की गुप्त भाषा का ज्ञान ही न था और जो मन में आया वह कह गया । फ़ौरलौंग (Forlong ) ने यह दिखला दिया है कि ब्राह्मणों का योगाभ्यास जैनियों के तपश्चरण से किस प्रकार लिया गया ( देखो शौर्ट स्टडीज़ इन कम्पैरेटिव रिलीजन: Short Studies in Comparative • Religion )।
जिन नज़ीरों का डा० गौड़ ने उल्लेख किया है उनमें १० बम्बई हाईकोर्ट रिपोर्ट पृष्ठ २४१ - २६७ अपनी किस्म का सबसे प्रधान नमूना है। यह फ़ैसला सन् १८७३ में हुआ जब कि पुरानी भूलें पूर्णतया प्रचलित थीं । हम मानते हैं कि विद्वान न्यायाधीशां ने अपने ज्ञानदीपकों की सहायता से विचारपूर्वक न्याय किया, किन्तु उनके ज्ञानदीपक ठीक नहीं थे । उन्होंने एल्फिन्स्टन के कथन का ( जो • हिन्दू कोड में उल्लिखित है ) पृष्ठ २४७, २४८, २४६ पर उल्लेख किया; और कुछ फ़ौजी यात्रियों के विवरण और कुछ और छोटे छोटे ग्रन्थों का उल्लेख किया; और अन्त में पादरी डाक्टर विल्सन की सम्मति ली जिनको वह समझते थे कि पाश्चात्य भारत की भिन्न भिन्न जातियों और उनके साहित्य और रीतियों का इतना विस्तार रूप ज्ञान था जितना किसी भी जीवित व्यक्ति को, जिसका नाम सहज में ध्यान में आ सके, हो सकता है । डाक्टर विल्सन की सम्मति यह थी कि वह जैन जाति की पुस्तकों में अथवा हिन्दू लेखकों के ग्रंथों में ऐसा कोई प्रमाण नहीं जानते थे जिससे उस रिवाज की सिद्धि हो सके जो उस मुकदमे में वादो पक्ष प्रतिपादन करते उन्होंने यह भी कहा कि उनको जैन जाति के एक यति और उसके ब्राह्मण सहायकों ( Assistants ) ने यह बत
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