________________
यह दशा वातावरण की थी और यह सूरत कानून की उस समय जब कि सन् १८७८ ई० में प्रोवी कौसिल के समक्ष यह विषय शिवसिंह राय ब० मु० दाखो के प्रसिद्ध मुकदमे के अपील में निर्णयार्थ पेश हुश्रा (मुक़दमा की रिपोर्ट १ इलाहाबाद पृष्ठ ६८८ व पश्चात् के पृष्ठों पर है)। अब यह मुकदमा एक प्रमाणित नज़ीर है जैसा कि प्रीवी कौंसिल के सब मुकदमात उचित रीति से होते हैं। मुकदमा मेरठ के जिले में लड़ा था और अपील सीधी इलाहाबाद हाईकोर्ट में हुई थी। हाईकोर्ट की तजबीज़ छठी जिल्द एन. डब्ल्यु० पी० हाईकोर्ट रिपोट्स में ३८२ से ४१२ पृष्ठों पर उल्लिखित है। मुद्दइया का जो एक जैन-विधवा थी दावा था कि वह अपने पति की सम्पत्ति की पूर्णतया अधिकारिणी है और उसको बिना आज्ञा व सम्मति किसी व्यक्ति के दत्तक लेने का अधिकार प्राप्त है। जवाब दावा में इन बातों से इन्कार किया गया था और यह उज्र उठाया गया था कि जैन लोगों का कानून उस नीति शास्त्र से जो हिन्दू-लॉ के नाम से विदित है विभिन्न नहीं है। पहिले एक केवल कानूनी दोष के कारण दावा अदालत अव्वल में खारिज हुआ मगर अपील होने पर हाईकोर्ट से पुन: निर्णय के लिए वापस हुआ। हाईकोर्ट से दोनों पक्षियों के वकीलों ने प्रार्थना की थी कि वह उचित हिदायात मुकदमा के निर्णयार्थ अदालत इब्तदाई को करे, और बुद्धिमान जज महोदयों ने इन हिदायात के दौरान में फ़रमाया कि “जैनियों का कोई लिखा हुआ कानून दाय का नहीं है और उनके कानून का पता केवल रिवाजों के एकत्रित करने से जो उनमें प्रचलित हैं। लग सकता है। जज मातहत महोदय ने इन हिदायतों पर पूरा-पूरा अमल किया, और बड़ी जाँच के पश्चात् दावा को डिग्री किया। अपील में हाईकोर्ट ने ब्यौरेवार और मेहनत के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org