Book Title: Jain Law
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Digambar Jain Parishad

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Page 173
________________ तृतीय भाग जैन धर्म और डाक्टर गौड़ का ___ "हिन्दू कोड" यह बात छिपी हुई नहीं है कि कोई कोई वकील बैरिस्टर आवश्यकता पड़ने पर मनसूखशुदा नज़ारें भी पेश करने में सङ्कोच नहीं करते, किन्तु यह किसी के ध्यान में नहीं पाता कि डाक्टर गौड़ जैसे उच्च कोटि के कानूनदाँ कानून-गौरव-पद्धति का ऐसा निरादर और अनाचार करेंगे। विज्ञ डाकुर ने अपने “हिन्दु कोड" में जैन धर्म के विषय में कितनी ही बातें ऐसी लिखी हैं जो केवल आश्चर्यजनक हैं और वैज्ञानिक खोज द्वारा सिद्ध सिद्धान्तों के विरुद्ध हैं। "वह जैनियों को हिन्दू डिस्से टर्ज अर्थात् हिन्दू धर्मच्युत भिन्न मतानुयायी कहते हैं, और जैन धर्म को बौद्ध-धर्म का बच्चा बतलाते हैं। हिन्दू कोड का ३३१ वाँ पैराग्राफ इस प्रकार है "जैन धर्म बौद्ध धर्म से अधिक प्राचीन होने का दावा करता है, किन्तु वह उसका बच्चा है। वास्तव में वह बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के बीच में का व्युत्पन्न मत है, जो उन लोगों ने स्थापित किया है जिनको एक नूतन धर्म स्वीकार नहीं था, और जिन्होंने एक ऐसे धर्म की शरण ली जिसने अपना पुराना नाता हिन्दू धर्म से कायम रक्खा और बौद्ध धर्म से उसके धार्मिक प्राचार विचार ले लिये। समय पाके जैसे जैसे बौद्ध धर्म का प्रभाव भारतवर्ष में कम होता गया, उसकी गिरती हुई महिमा जैन धर्म में बनी रही, और गिरते गिरते वह हिन्दू धर्म के एक ऐसे रूपान्तर में परिणत हुआ कि जिसमें उसका स्वत्व मिलकर लोप हो गया ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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