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विवाहिता च या कन्या तस्या भागो न कहिंचित् । पित्रा प्रीत्या च यदत्त तदेवास्या धनं भवेत् ॥ २६ ॥
अर्थ-जिस कन्या का ब्याह हो गया हो उसका पिता के द्रव्य में भाग नहीं होगा। पिता ने जो कुछ उसको दिया हो वही उसका धन है ॥ २६ ॥
यावतांशेन तनया विभक्ता जनकेन तु ।। तावतैव विभागेन युक्ताः कार्य निजस्त्रियः ॥ २७ ॥
अर्थ-पिता को अपनी स्त्रियों को पुत्रों के समान भाग देना चाहिए ॥२७॥
पितुरुर्ध्व निजाम्बायाः पुत्र गश्च सार्धकः । लौकिक व्यवहारार्थ तन्मृता ते समांशिनः ॥ २८ ॥
अर्थ-यदि पिता के मरने के पश्चात् बाँट हो तो पुत्रों को चाहिए कि अपनी माता को आधा-आधा भाग लोक व्यवहार के लिए दें और उसके मरने के पीछे उस धन को सम भागों में बाँट लें ॥ २८ ॥
पुत्रयुग्मे समुत्पन्ने यस्य प्रथमनिर्गमः । तस्यैव ज्येष्ठता ज्ञेया इत्युक्त जिनशासने ॥ २६ ।!
अर्थ-दो पुत्र एक गर्भ से हों तो जो पुत्र प्रथम पैदा हो वही ज्येष्ठ पुत्र है। ऐसा जैन शासन का वचन है ।। २६ ।।
दुहितापूर्वमुत्पन्ना सुतः पश्चाद्भवेद्यदि । पुत्रस्य ज्येष्ठता तत्र कन्याया न कदाचन ।। ३० ॥
अर्थ-प्रथम कन्या जन्मे फिर पुत्र, तो भी पुत्र ही ज्यैष्ठ्य का हकदार होगा, कन्या ज्येष्ठ नहीं हो सकती ।। ३० ॥
यस्यैकस्यां तु कन्यायां जातायां नान्यसंततिः । प्राप्त तस्याश्चाधिपत्यं सुतायास्तु सुतस्य च ॥ ३१ ॥
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