________________
भार्या का पुत्र उत्पन्न हो तो वह भी पुनः सम्पूर्ण भ्राताओं के समान भाग लेने का अधिकारी होगा ॥ २५ ॥
पुब्बं पच्छाजादे विभक्त जो सब्ब संगाही । .. जीवदु पिच्चधणोवि हु जाम्हि जहातहादिण्णं ॥ २६ ॥
णेह विसादो तत्थहु गिण्ह जहुणावरेण एतत्थ । पंचत्तगये जणये भाया समभाइणी हवेतत्त्थ ॥ २७ ॥
अर्थ-पुत्र, उत्पन्न होने पर, उस जायदाद में जो उसके पैदा होने से पहले बँट गई है हकदार हो जाता है। अपने जीते जी पिता ने चाहे जिस तरह पर अपना धन चाहे जिस किसी को दे दिया हो, उसमें उज़ करना अनुचित है, और वह किसी को नहीं लेना चाहिए। पिता के पाँचवें प्राश्रम को चले जाने पर, अर्थात् मर जाने पर, माता भी जायदाद में बराबर की हकदार हो जाती है ।। २६-२७॥
भाया भयणी दोबिय संभज्जा दायभाग दो सरिसा । भायरि सु पहाडेबिय लहु भायर भायणी हु संरक्खा ।। २८॥
अर्थ-भाई-बहिन दोनों जायदाद को समान बाँट लें। बड़े भाई को उचित है कि छोटे भाई और बहिन की रक्षा करे ॥२८॥
दत्ता दाण विसेसं भइणीउ पारिणे · दब्बा । दो पुत्ता एय सुदा धणं विभज्जति हा तहाभाये ।। २६ सेसं जेट्टो लादिहु जहा रिणं णो तहा गिण्हे । सुद्दाहु वंभजा जे चउ तिय दुगुणप्पभाइयो णेया ॥ ३० ॥
अर्थ-दहेज देकर बहिन का विवाह कर देना चाहिए। अगर दोलड़के और एक लड़की हो तो सम्पत्ति के तीन भाग करने चाहिएँ । उससे जो बचे उसको बड़ा भाई ले, जिससे ऋण न लेना पड़े। यह जान लेना चाहिए कि ब्राह्मण पिता के पुत्र, शूद्राणी माता की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org