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अर्थ - स्त्री दत्तक पुत्र को लेकर और उसको सम्पूर्ण अधिकार देकर आप धर्म - कार्य में संलग्न होने के निमित्त जङ्गम तथा स्थावर द्रव्य उसको सौंप देती है ।। ५५ ।।
पुनः स दत्तको काललब्धि प्राप्य मृतो यदि । भर्तृद्रव्यादि यत्नेन रक्षयेत् स्तैन्यकर्मतः ।। ५६ ।।
अर्थ - पुन: काल-लब्धि के वश यदि वह पुत्र बिना विवाह ही मर जावे तो भर्ता के द्रव्य की चोरी आदि से रक्षा करनी चाहिए || ५६ ||
न तत्पदं कुमारोऽन्यः स्थापनीयो भवेत्पुनः ।
प्रेतेऽनूढेन पुत्रस्याज्ञाऽस्ति श्रीजिनशासने ॥ ५७ ॥
अर्थ — उस पुत्र का मरण हो जाने पर पुनः उस कुमार के पद पर दूसरे किसी को स्थापित करने की आज्ञा श्रीजिनशासन में नहीं है, यदि वह कुँवारा मर जावे ।। ५७ ।।
सुतासुतसुतात्मोय भागिनेयेभ्य इच्छया ।
यद्धपि जामात्रेऽन्यस्मै वा ज्ञातिभोजने ॥ ५८ ॥
अर्थ - उस (मृतक पुत्र) के द्रव्य को दोहिता, दोहिती, भानजा, जमाई तथा किसी अन्य को दे सकते हैं तथा जाति के भोजन अथवा धर्म - कार्यो में लगा सकते हैं ॥ ५८ ॥
स्वयं निजास्पदे पुत्रं स्थापयेच्चेन्मृतप्रजाः ।
युक्त परमनूढस्य पदे स्थापयितुं न हि ॥ ५६ ॥
अर्थ - यदि पुत्र मर गया हो तो अपनी जगह पर पुत्र स्थापन करने की आज्ञा है, परन्तु प्रविवाहित पुत्र के स्थान पर स्थापन नहीं कर सकते हैं || ५८ ॥
पित्रोः सत्वे न शक्तः स्यात् स्थावरं जङ्गम तथा ।
विविक्रियं गृहींतु वा कर्तु पैतामहं च सः ।। ६० ।।
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