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की सन्तान में इस प्रकार विभाग होगा कि ब्राह्मणी के पुत्र को चार भाग, क्षत्राणी के पुत्र को तीन भाग और वैश्याणी के पुत्र को दो भाग मिलेंगे (६४) । भद्रबाहु संहिता और अर्हनोति दोनों, में ऐसा उल्लेख है कि विभाज्य सम्पत्ति के दस समान भाग करने चाहिएँ जिनमें से चार ब्राह्मणी के पुत्र को तीन क्षत्राणी के पुत्र को दो वैश्याणी के पुत्र को देने चाहिए और एक अवशिष्ट भाग धर्मकार्य में लगा देना चाहिए ( देखो भद्रबाहु संहिता ३३ और ग्रहनीति ३८, ३८ ) ।
यदि क्षत्रिय पिता हो और उसके क्षत्राणी और वैश्याणी तथा शूद्राणी तीन स्त्रियाँ हों तो शूद्राणी के पुत्र को कुछ भाग नहीं मिलेगा । क्षत्राणी के पुत्र को दो भाग और वैश्याणी के पुत्र को एक भाग मिलेगा (६५) । अर्थात् क्षत्राणी और वैश्याथी के पुत्रों में क्रम से दो और एक की निस्बत में सम्पत्ति के भाग कर दिये जाएँगे । जैन-लॉ के अनुसार उच्च वर्ण के पुरुष द्वारा जो शूद्रा से पुत्र हो उसे भाग नहीं मिलता है (६६) । केवल वह गुज़ारा पाने का अधिकारी है (६७) । या जो कुछ उसका पिता अपनी जीवनावस्था में उसको दे गया हो वह उसको मिलेगा (६८) । इन्द्रनन्दि जिन संहिता का इस विषय में कुछ मतभेद है ( देखो श्लोक ३०-३१ ) । वह ब्राह्मण पिता से जो पुत्र ब्राह्मणी क्षत्राणो और वैश्याणी से हों उनके भागों के विषय में भद्रबाहु व अर्हन्नोति से सह
( ६४ ) भद्र० ३१ - ३३; श्र० ३८-३६; इन्द्र० ३० ।
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( ६५ ) अह० ४०; भद्र० ३५ ।
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( ६६ ) ( ६७ ) ( ६८ ) भद्र० ३५।
३६-४१;” ३६; इन्द्र० ३२ ।
” ३६–४१;” ३६ ॥
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