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वाला कोई नहीं है ( ६५)। जो जङ्गम द्रव्य माता ने पुत्र को व्यापार या प्रबन्ध करने के लिए दिया हो उसे व्यय कर डालने का पुत्र को अधिकार नहीं है (६६)। माता पिता के जीवन में दत्तक पुत्र को उनकी अथवा बाबा की दोनों प्रकार की सम्पत्ति को पृथक करने का कोई अधिकार नहीं है (६७)। औरस पुत्र के सम्बन्ध में भी यही नियम है (६८)। परन्तु बाबा की सम्पत्ति में पुत्रों को विभाग कराने का अधिकार है'(६६)। पुत्र हों या न हो पिता को अधिकार है कि अपनी मृत्यु के पश्चात् अपनी विधवा के निमित्त तथा सुप्रवन्धार्थ किसी अन्य पुरुष द्वारा अपनी निजी सम्पत्ति का वसीयत के तौर पर प्रबन्ध करावे (१००)।
विभाग के पश्चात् प्रत्येक भागी को अपने भाग के मुन्तिकिल ( व्यय ) करने का अधिकार है (१०१)। विधवा भी उस सम्पत्ति को, जो उसने पति से पाई हो, चाहे जैसे व्यय कर सकती है, कोई उसको रोक नहीं सकता (१०२)। पतिमरण के पश्चात् यदि सास या श्वसुर ने उसको पुत्र गोद ले दिया है ( तो जब तक वह दत्तक पुत्र वयःप्राप्त न हो) वह योग्य आवश्यकताओं अर्थात् धार्मिक कार्यों और कौटुम्बिक भरण पोषण के लिए सम्पत्ति को स्वयं व्यय कर सकती है (१०३)।
(६५) भद्र० ६२ । (६६) भद्र० ६४ । ( १७ ) वर्ध० ४७। (६८)" १५; अह. ८५ (६१) देखो विभाग प्रकरण । (१००) वर्ध० २०-२१; अहं. ४६-४८। (१०१) भद्र० ६२, अह. १२५ । (१०२) अह ० ११५ व १२५।। (१०३) भद्र० ११३ व ११७; वर्ध० ३५ ।
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