________________
मृत्यु-पश्चात् के लिए दे सकती है। जैन कानून के अनुसार स्त्री-धन के अतिरिक्त स्त्री की सम्पत्ति उसके भाई भतीजों या उनके सम्बन्धियों को नहीं मिलती है किन्तु उसके पति के भाई भतीजों को मिलती है ( २८)। यह नियम भद्रबाहु संहिता के अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि जिसके अनुसार पुत्री के दायाद नियुक्त किये जाने पर पति के भाई भतीजे दाय से वञ्चित हो जाते हैं ( २६ )।
विभाजित भाई के मरने पर उसकी विधवा अथवा पुत्र के अभाव में उसकी सम्पत्ति उसके शेष भाइयों में बराबर बराबर बांट ली जायगी ( ३० )। परन्तु यदि पुत्र होगा तो वही अधिकारी होगा (३१)। यदि उसने कोई निकट-सम्बन्धी नहीं छोड़ा है तो उसकी सम्पत्ति का अधिकार पूर्वोक्त क्रमानुसार होगा ( ३२ )।
यदि किसी मनुष्य के पुत्र नहीं है तो जायदाद प्रथम उसकी विधवा को, पुन: मृतक की माता को ( यदि जीवित हो ) मिलेगी ( ३३)। भावार्थ यह है कि पुत्र के पश्चात् माता अधिकारक्रमानुसार दूसरी उत्तराधिकारिणी है। अर्थात् विधवा और पुत्र दोनों के अभाव में सम्पत्ति मृतक की माता को मिलेगी (३४)। यदि विधवा शीलवती है तो उसके पुत्र हो या न हो वह अपने पति की सम्पत्ति की पूर्ण अधिकारिणी होगी ( ३५)। दायभाग की नीति
(२८) अहे. ८१-८२। ( २६ ) भद्र० ६६-६७ । (३०) इन्द्र० ४०। (३१) " ३५; वर्ध० ११; अहं. ७४ । (३२) " ४१। (३३) भद्र० ११०; अह० ११२ । (३४) भद्र० ११०; अहं० ११२ । (३५) वर्ध० १४, ,, ५४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org