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न हों तो उसकी संरक्षकता उसकी माता को प्राप्त होगी (७)। यदि उन्मत्तता, असाध्य रोग, आसेब या इसी प्रकार के किसी अन्य कारण वश कोई विधवा अपनी सम्पत्ति की रक्षा करने के अयोग्य हो तो उसकी रक्षा उसके पति का भाई, भतीजा या गोत्रज, और उनके प्रभाव में पड़ोसी करेगा (८)। परन्तु अब असमर्थ और रक्षक का विषय सरकारी कानून गार्डियन्ज़ एण्ड वाज ऐक के अनुसार निर्णीय होगा। पागलों का कानून असमर्थ और अयोग्य मनुष्यों के कोर्ट का कानून तथा इसी प्रकार के विषय सम्बन्धी कानून भी अपने अपने मौके पर लागू होंगे।
जैन-लॉ में इस अधिकार को स्वीकार किया गया है कि कोई मनुष्य अपने जीवन-काल में वसीअत द्वारा अपनी सम्पत्ति का कोई प्रबन्धक नियत कर दे जो उसकी विधवा एवं उसकी सम्पत्ति की रक्षा करे (E) ऐसा नियुक्ति-पत्र साक्षियों द्वारा पंचों या सरकार से रजिस्टरी कराना चाहिए (१०)। यदि सिपुर्ददार सम्पत्ति के स्वामी की मृत्यु के पश्चात् विश्वासघाती हो जावे तो विधवा को अधिकार होगा कि अदालत द्वारा उसे पृथक करा दे और उसके स्थान पर अन्य पुरुष को नियुक्त करा दे (११)। वर्धमान नीति के अनुसार वह स्वयं भी उस प्रबन्धक की जगह अपनी सम्पत्ति का प्रबन्ध कर सकती है (१२)। प्रबन्धक का कर्तव्य है कि वह सम्पत्ति की देखभाल पूर्ण सावधानी
(७) वध० १८; अह ८३-८४ । (८) अह ० ७८-८०।। (६) ,, ४६-४८; वध १६-१७, व २०-२५ । (१०) ,, ४७; वर्ध० २०-२१ । (११) अह ० ४६-५०; भद्र० ७१-७२ ।
(१२) वध० २२-२३; भद्र० ७३-७४ का प्राशय भी ऐसा ही जान पड़ता है।
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