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वर्ष के बाद दूसरा विवाह करे, जिसके सन्तान हो के मर जाती हो उसके होते हुए १५ वर्ष के बाद फिर विवाह करे। और अप्रियवादिनी की उपस्थिति में तत्काल दूसरा विवाह करे ॥१६७।।
सुरूपां सुप्रजां चैव सुभगामात्मनः प्रियाम् । धर्मानुचारिणी भायीं न त्यजेद् गृहसद्बती ॥१८॥
रूपवतो, पुत्रवती, भाग्यशालिनी, अपने को प्रिय और धर्मानुचारिणी भार्या के होते हुए दूसरा विवाह नहीं करना चाहिए ॥१६६।
अकृत्वा विवाहं तु तृतीयां यदि चोद्वहेत् । विधव सा भवेत्कन्या तस्मात्कार्य विचक्षणा ॥२०४।।
अर्कविवाह किये बिदून तीसरा विवाह समझदार मनुष्य को नहीं करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जावेगा तो कन्या विधवा के समान होगी ॥२०४॥
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