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जो किसी व्यक्ति की मृत्यु पर लागू होती है वही मनुष्य के लापता, पागल और संसार-विरक्त हो जाने पर लागू होती है ( ३६ )। जब किसी व्यक्ति का कुछ पता न चले तो उसकी सम्पत्ति की व्यवस्था वर्तमान समय में सरकारी कानून-शाहादत के अनुकूल होगी, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जिसका सात वर्ष तक कुछ पता न लगे मृतक मान लिया जाता है। केवल असाध्य पागलपने की दशा में हो अधिकार का प्रश्न उत्पन्न हो सकता है, किन्तु पागल की व्यवस्था अब सरकारी कानून ऐक्ट नं० ४ सन् १८१२ के अनुसार होगी। और पागल के जीवन-काल में दाय अधिकार प्राप्त करने का प्रश्न नहीं उठेगा। ____दाय-सम्बन्धी सर्वविवादास्पद विषय कानून या स्थानीय रिवाज के अनुसार ( यदि कोई हो ) न्यायालयों द्वारा निर्णय करा लेने चाहिए जिससे पुनः झगड़ा न होने पावे ( ३७)।
यदि किसी पुरुष के एक से अधिक स्त्रियाँ हो तो सबसे बड़ी विधवा अधिकार पाती है और कुटुम्ब का भरण-पोषण करती है (३८) परन्तु यह नियम स्पष्ट नहीं है; अनुमानतः यह नियम राज्य एवं अन्य अविभाज्य सम्पत्ति सम्बन्धी प्रतीत होता है। साधारणत: जैन-नीति का आशय यह प्रतीत होता है कि सब विधवाएँ अधिकारी हों और प्रबन्ध कम से कम उस समय तक बड़ी विधवा करे जब तक कि वह सब एक दूसरे से राज़ी रहें।
यदि किसी की अनेक स्त्रियों में से किसी के पुत्र हो तो वह सबका अधिकारी होगा (३६)। अर्थात् वह अपनी माता
(३६) अहं ० ५३ व ११॥ (३७ ) इन्द्र० ३७-३८ । (३८)” १७ ॥ ( ३६ ) भद्र० ४०; अहं० १८ ।
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