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अथवा सौतेली सब माताओं की सम्पत्ति को जब जब वह मरेंगी पावेगा (४०)।
राजा का कर्तव्य यदि किसी मनुष्य का उत्तराधिकारी ज्ञात न हो तो राजा को तीन वर्ष पर्यन्त उसकी सम्पत्ति सुरक्षित रखनी चाहिए, और यदि इस बीच में कोई व्यक्ति उसको आकर न माँगे तो उसे स्वयं ले लेना चाहिए (४१)। किन्तु उस द्रव्य को धार्मिक कार्यों में खर्च कर देना चाहिए (४२)। इन्द्रनन्दि जिन संहिता में यह नियम ब्राह्मणीय सम्पत्ति के सम्बन्ध में उल्लिखित है (४३)। क्योंकि ब्राह्मण की सम्पत्ति को राजा ग्रहण नहीं कर सकता है (४४)। परन्तु वर्धमान नीति में यह नियम सर्व वर्णों की सम्पत्ति के सम्बन्ध में है कि राजा को ऐसा धन-धर्म कार्यों में लगा देना उचित है (४४)। तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण की सम्पत्ति को उसकी विधवा वा अन्य दायादों के अभाव में कोई ब्राह्मण ही ग्रहण कर सकेगा ( ४५)।
(४०) अहं० १८। (४१) वर्ध० ५७; इन्द्र० ३६ । (४२) अर्ह० ७४-७५, वर्ध० ११-१२ । (४३) इन्द्र० ३६ । (४४) वर्ध० १२; इन्द्र० ३६ । (४५) इन्द्र० ४०।
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