________________
७-ऐसी विधवा माता जिसको व्यभिचार के कारण दायभाग नहीं मिला हो (७)।
८-तीनों उच्च वर्णो के पुरुषों से जो शूद्र स्त्री के पुत्र हो (C)
६-माता (*) और पिता जब वह दायभाग के अयोग्य हो (६)।
१०-दासीपुत्र (१०)
सम्पत्ति पानेवाले का कर्तव्य है कि वह उन मनुष्यों का भरण पोषण करे जो गुज़ारा पाने के अधिकारी हों ( ११)। सामान्यतः सब बच्चे चाहे वह उत्पन्न हो गये हों अथवा गर्भ में हैं। और सब मनुष्य जो कुटुम्ब से सम्बन्ध रखते हैं कौटुम्बिक सम्पत्ति में से भरणपोषण पाने के अधिकारी हैं ( १२ ): और परिवार की पुत्रियों के विवाह भी उसी सम्पत्ति से होने चाहिएँ (१३)। वयःप्राप्त पुत्र भरण पोषण के अधिकारी नहीं हैं चाहे वह अस्वस्थ ही हों (१४)। जो युवतियाँ विवाह द्वारा अपने परिवार में आ जावें ( अर्थात् बहुएँ) वह सब भरण-पोषण पाने का अधिकार रखती हैं, चाहे उनके सन्तान हो अथवा न हो; परन्तु उसी अवस्था में कि उनके पति सम्मि
( ७ ) अई. ७६। ( ८ ) , ६६, वध . ४ ।
( ६ ) भद्र० ६५ व ७७; और वह प्रमाण जो दायभाग से वञ्चित रहने के सिलसिले में दर्ज हैं।
(१०) इन्द्र० ३५; अह ० ४३, भद्र० ३४ । (११) ,, १३-१४; भद्र० ७४ व ६८ । (१२) अह. १०।। (१३) इन्द्र० २६, अह. २०; भद्र० १६ व १०६; वध है। ( १४ ) प्रेमचन्द पिपारा व० हुलासचन्द पिपारा १२ विक्ली रिपोर्टर
४१४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org