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क्योंकि उस समय सम्पत्ति की स्वामिनी पुत्रवधू है, न कि सास ( ११४)। श्वसुर की उपार्जित सम्पत्ति में या बाबा की सम्पत्ति में जो श्वसुर के अधिकार में आई हो विधवा पुत्रवधू को व्यय का अधिकार नहीं है (११५), परन्तु अपने मृत पति की स्वयं प्राप्त की हुई सम्पत्ति को व्यय कर देने का अधिकार है (११६)। श्वसुर के मर जाने पर विधश पुत्रवधू का पुत्र अपने पितामह की सम्पत्ति का स्वामी होता है विधवा पुत्रवधू को केवल गुज़ारे का अधिकार है (११७)। इसलिए यदि पिता पितामह के जीवनकाल में मर गया हो तो विधवा माता अपने श्वसुर की सम्पत्ति को अपने पुत्र की सम्मति बिना व्यय नहीं कर सकती (११८)।
विवाहिता पुत्री का अपने भाइयों की उपस्थिति में पिता की सम्पत्ति में कोई भाग नहीं है (११९)। जो कुछ उसके पिता ने विवाह के समय उसको दे दिया हो वही उसका है (११६)। विवाहिता लड़कियाँ अपनी अपनी माताओं के स्त्रीधन को पाती हैं (१२०)। पुत्री के अभाव में दौहित्रो और उसके भी अभाव में पुत्र माता के स्त्रीधन का अधिकारी होता है (१२१)। अविवाहिता पुत्री, एक हो या अधिक, भाइयों की उपस्थिति में पिता की सम्पत्ति में
(११४) भद्र० ७६। ( ११५) , ६१; अहं० १०१-१०२ । (११६) अहं० १०२ । (११७) , १०३ । (११८) ,, १०१ । (११६) भद्र० २०; अहं० २६ । (१२० ) इन्द्र० १४ । (१२१) , ११।
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