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तो सब उच्च वर्णवाले भाइयों को मिलकर उनके पालन पोषण का प्रबंध करना चाहिए (७५)।। ___ यदि किसी शूद्र के दासीपुत्र उत्पन्न हो तो वह विवाहिता स्त्री के पुत्र से अर्ध भाग पायेगा (७६)। इससे यह अनुमान होता है कि विवाहिता स्त्री के पुत्र के अभाव में शूद्र का दासीपुत्र ही उसकी सर्व सम्पत्ति का अधिकारी हो जायगा। उच्च जातियों में दासीपुत्र का कोई भाग दाय में नहीं रक्खा है (७७)।
अविभाजित सम्पत्ति में अधिकार आभूषण, गोधन, अनाज और इसी प्रकार की सर्व जङ्गम सम्पत्ति का मुख्य स्वामी पिता होता है (७८)। परन्तु स्थावर सम्पत्ति का पूर्ण म्वामी न पिता होता है न पितामह (७६)। अर्थात् उनको उसके बेचने का अधिकार नहीं है। इसका कारण यह है कि जिस मनुष्य ने संसार में खानेवाले पैदा किये हैं वह उनके पालन पोषण के आधार से उनको वञ्चित नहीं कर सकता।
पितामह के जीवन-काल में उसकी स्थावर सम्पत्ति को कोई नहीं ले सकता। परन्तु जङ्गम द्रव्य आवश्यकतानुसार कुटुम्ब का प्रत्येक व्यक्ति व्यय कर सकता है (८०)। यदि कोई व्यक्ति अपनी पैत्रिक सम्पत्ति में से अपनी बहिन या भानजी को कुछ देना चाहे तो उसका पुत्र उसका विरोध कर सकता है (८१)।
( ७५ ) भद्र० ३४ । (७६) अह. ४५। (७७ ) अम्बाबाई ब० गोविन्द २३ बम्बई २५७ । (७८) इन्द्र० ४; अह ० ६ । (७६) " ४; " ६। (८०) " । (८) भद्र० ६i
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