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चाहें फिर सम्मिलित हो सकते हैं (५८)। विभाग पश्चात् यदि कोई भाई और पैदा हो जाय जो विभाग समय माता के गर्भ में था तो वह भी एक भाग का अधिकारी है और विभाग पश्चात् के आय . व्यय का हिसाब लगाकर उसका भाग निर्धारित होगा (६०)। सामान्यतः उन पुत्रों को जो विभाग पश्चात् उत्पन्न हुए हो कोई अधिकार पुन: विभाग कराने का नहीं है। वह केवल अपने पिता का भाग पा सकते हैं (६१)। हिन्दू-लॉ में विभाग समय यदि पिता ने अपने निमित्त कोई भाग नहीं लिया है और उसके पश्चात् पुत्र उत्पन्न होवे जिसके पालन-पोषण का कोई आधार नहीं हो तो वह पुत्र अपने पृथक हुए भाइयों से भाग पाने का अधिकारी है (६२)। अनुमानतः जैन-नीति में भी इन्द्रनन्दि जिन संहिता के २६ वें श्लोक का यही आशय है, विशेष कर जब उसको २७ वें श्लोक के साथ पढ़ा जावे । दोनों श्लोकों को एक साथ पढ़ने से ऐसा ज्ञात होता है कि इनका सम्बन्ध ऐसी दशा से है कि जब पिता ने अपनी सम्पत्ति कुछ अन्य जनों को दे दो है और शेष अपने पुत्रों में विभक्त कर दी है।
अन्यान्य वर्गों की स्त्रियों की सन्तान में विभाग
यदि ब्राह्मण पिता है और चारों वर्णो की उसकी स्त्रियाँ हैं तो शूद्रा के पुत्र को हिस्सा नहीं मिलेगा (६३)। परन्तु शेष तीन वर्णो
(५६) भद्र० १०४-१०५।। (६०) श्रह ३७; इन्द्र० २६ । (६१) ". ३६; भद्र० १०६ ।
(६२) गौड़ का हिन्दू कोड द्वि० वृ० पृ० ७५२, गनपत ब. गोपालराव २३ बम्बई ६३६; चंगामा ब० मुन्नी स्वामी २० मद्रास ७५; कुछ अंशों में इस सम्मति की पुष्टि प्रीवी कौं० के फैसला मुकदमा बिशनचन्द ब. असमेदा ६ इला० ५६० विशेषतः ५७४-५७५ पृष्ठ से होती है।
(६३) भद्र० ३१-३३; अहं ० ३८-३९ ।
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