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अधिकार नहीं हो सकता। यदि विभक्त होने के पश्चात् कोई भाई मर जाय तो उसकी पैत्रिक सम्पत्ति को उसके भाई और बहिन समान बाँट लें (५४)। ऐसा उसी दशा में होगा जब मृतक ने कोई विधवा या पुत्र नहीं छोड़ा हो। यहाँ भी बहिन का अर्थ कुँवारी बहिन का है जिसके विवाह और गुज़ारे का भार पैत्रिक सम्पत्ति पर पड़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसका यह दायत्व सप्रतिबन्ध दायभाग की दशा मेंमान्य नहीं हो सकता अर्थात् उस सम्पत्ति से लागू नहीं हो सकता जो चाचा ताऊ से मिली हो ( ५४ )।
विधवा भावज का अधिकार विधवा भावज अपने पति के भाग को पाती है और उसको अपने पति के जीवित भाइयों से अपना भाग पृथक कर लेने का अधिकार है (५५)। यदि वह कोई पुत्र गोद लेना चाहे तो ले सकती है ( ५६ )। परन्तु ऐसे भाई की विधवा का जो पहिले ही अलग हो चुका हो विभाग के समय कोई अधिकार नहीं है। यदि कोई भाई साधू होकर अथवा संन्यास लेकर चला गया है तो उसका भाग विभाग के समय उसकी स्त्रो पावेगी ( ५७ )।
विभाग एवं पुनः एकत्र होने के नियम एक भागाधिकारी के पृथक हो जाने से सबकी पृथक्ता हो जाती है ( ५:८)। विभाजित होने से पूर्व सब भाई सम्मिलित समझ जाते हैं (५८)। परन्तु विभाग पश्चात् भी जितने भाई
(५४) भद्ग० १०६ ।
(१५ ) अहं० १३१; व घीसनमल ब. हर्षचन्द ( अवध ) सेलेक्ट केसेज़ नं० ४३ पृ० ३४ ।।
(५६) अह १३१ । (५७) भद्र० ८५; वर्ध० ४८; अह ६० । (५८) अह० १३० । (५८) अह० १३० ।
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