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गोधन अर्थात् गाय भैंस घोड़ा इत्यादि विभागयोग्य हैं। परन्तु यदि कोई भागी पुरुष उनके रखने के योग्य न हो तो उसका भाग भी दूसरे भागी निःसन्देह ले लें (२६)। अनुमानत: इस नियम पर वर्तमान काल में जब कि गोधन का मूल्य अति अधिक हो गया है व्यवहार नहीं हो सकेगा। शायद पूर्व समय में यह नियम उस दशा में लागू होता था जब कोई भागी किसी चतुष्पद को खिलाने और रखने में असमर्थ होता था तो उसके बदले में किसी से कुछ याचना किये बिना ही अपने भाग का परित्याग कर देता था। ऐसी दशा में उस भाग का मूल्य देने का दायत्व यों ही किसी पर न हो सकता था।
दायाद की अयोग्यता निम्नलिखित मनुष्य दायभाग से वञ्चित समझे गये हैं
१-पैदायशी नपुंसकता या ऐसे रोग का रोगी जो चिकित्सा करने से अरोग नहीं हो सकता ( ३० )।
२-जो सब प्रकार से सदाचार का विरोधी हो ( ३१ ) । ३-उन्मत्त, लँगड़ा, अन्धा, रज़ील (क्षुद्र= नीच), कुब्जा (३२)।
४-जातिच्युत, अपाहिज़, माता पिता का घोर विरोधी, मृत्युनिकट, गूंगा, बहरा, अतीव क्रोधी, अङ्गहीन ( ३३ )।
ऐसे व्यक्ति केवल गुज़ारे के अधिकारी हैं, भाग के नहीं (३४)। परन्तु यदि उनका रोग शान्त हो गया है तो वह अपने भाग के अधि
(२६) भद्र० १८। ( ३० ) ,, ६९; अर्ह० ६२, ६३; इन्द्र० ४१-४२, वर्ध० ५२, ५३ । (३१) इन्द्र० ४५। (३२) भद्र० ७०; अहं० १३-१४; इन्द्र० ४१-४२, वर्ध० ५३ । (३३) अहं० ६२-६३; इन्द्र० ४१-४२ व ४५ । ( ३४ ) , ६ , १०, ४१-४२ व ४३ ।
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