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अपने वर्ण में अर्थात् शूद्र स्त्री से विवाह करने का अधिकार है (१६)। श्रीश्रादिपुराण में ऐसा नियम दिया हुआ है
“शूद्रा शूद्रेण वाढव्यं नान्यातां स्वांच नैगमः । वहेत्सवां तेच राजन्माः वां द्विजन्मःत्रकृचिञ्चताः ।।"
पर्व १६-२४७ श्लो. इसका अर्थ यह है कि पुरुष अपने से नीचे वर्ण की कन्या से विवाह कर सकता है। अपने से ऊँचे वर्ण की स्त्री से नहीं कर सकता। इस प्रकार ब्राह्मण चारों वर्ण की स्त्रियों, क्षत्रिय तीन वर्ण की, वैश्य दो वर्ण की, और शूद्र केवल एक वर्ण की अर्थात् सवर्ण स्त्री का पाणि ग्रहण कर सकता है। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि यह नियम पूर्व समय में प्रचलित था। पश्चात् में ब्राह्मण पुरुष का शूद्र स्त्री से विवाह करना अनुचित समझा जाने लगा।
परस्पर त्रिवर्णानां विवाहः पंक्ति भोजनम् । कर्तव्यं न च शूद्रैस्तु शूद्राणां शूद्रकैः सह ॥ ६/२५६ ।। (१७)।
विवाहों के भेद ब्राह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह और प्राजापत्य विवाह यह चार धर्म विवाह कहलाते हैं (१८)। और असुर, गांधर्व, राक्षस और पैशाच विवाह यह चार अधर्म विवाह कहलाते हैं ( १८)।
बुद्धिमान वर को अपने घर पर बुलाकर बहुमूल्य आभूषणों आदि सहित कन्या देना ब्राह्म विवाह है (१६)। श्रोजिनेन्द्र (१६) अह० ४४ ।
(१७ ) धर्म संग्रह श्रावकाचार मेधावी रचित १५०५ ई. (१५६१ विक्रम संवत् )।
(१८) त्रि. अ० ११ श्लोक ७० । (१६)" " " ७१ ।
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