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पुत्र के अविवाहित मर जाने पर उसके लिए कोई पुत्र गोद नहीं ले सकता है ( १८ ) । उसकी विधवा माता उसका धन जामाता को दे दे वा बिरादरी के भोजन वा धर्म - कार्य में स्वेच्छानुसार लगाने (१८ ) । अभिप्राय यह है कि उसके विरसे की अधिकारिणी उसकी विधवा माता ही होगी जो सम्पूर्ण अधिकार से उसको पावेगी | वह विधवा अपने निमित्त दूसरा पुत्र भी गोद ले सकती है ( २० ) अर्थात् अपने पति के लिए ( २१ ) उस मृतक पुत्र के लिए नहीं ले सकती है। एक मुकदमे में, जिस का निर्णय हिन्दू-लॉ के अनुसार हुआ, जैन विधवा का पहिले दत्तक पुत्र के मर जाने पर दूसरा पुत्र गोद लेने का अधिकार ठीक माना गया ( २२ ) । दत्तक लेने की सब वर्णों को आज्ञा है ( २३ ) । बम्बई प्रान्त के एक मुकदमे में जिसका निर्णय रिवाज के अनुसार सन् १८८६ ई० में हुआ जिसमें पिता की जीवन अवस्था में पुत्र के मर जाने से सर्व सम्पत्ति उस मृतक पुत्र की विधवाओं ने पाई, परन्तु बड़ी विधवा ने पुत्र गोद ले लिया, इसे न्यायालय ने उचित ठहराया यद्यपि छोटी विधवा की बिना सम्मति यह कार्य हुआ था ( २४ ) !
(१८) भद्र० ५६; श्रह ० १२१ – १२२ व १२४; वर्ध० ३० - -३२ । (१६) भद्र० ५८; अर्ह ० १२३, वर्ध० ३३–३४ ।
( २० ० ) वर्ष ० ३४ और देखो प्रिया अम्मानी ब० कृष्णस्वामी १६ मद
रास १८२ ।
(२१) अह० १२४ ।
( २२ ) लक्ष्मीचन्द व० गहूबाई = इला० ३१६ ॥
( २३ ) श्र० ८ ।
( २४ ) श्रमावा ब० महद गोडा २२ बम्बई ४१६ और देखो अशरफी कुँअर ब० रूपचन्द ३० इला० १६७ ।
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