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जैन-लॉ
प्रथम भाग
प्रथम परिच्छेद दत्तक विधि और पुत्र - विभाग
से सम्बोधित कर देते हैं । प्रकार के माने गये हैं ( १
यों कहने को लोग बहुत प्रकार के सम्बन्धियों को पुत्र ( १ ) शब्द परन्तु कानून के अनुसार पुत्र दो ही ) एक औरस ( २ ) दूसरा दत्तक (२) । औरस पुत्र विवाहिता स्त्री से उत्पन्न हुए को, और दत्तक जो
गोद लिया हो उसे कहते हैं । सर्व पुत्रों में औरस और दत्तक ही मुख्य पुत्र गिने गये हैं । गौण पुत्र जब गोद लिये जावें तभी पुत्रों की भाँति दायाद हो सकते हैं अन्यथा अपने वास्तविक सम्बन्ध से
( १ ) जैसे सहोदर ( लघु भ्राता ), पुत्र का पुत्र, पाला हुआ बच्चा इत्यादि ( देखो भद्रबाहु संहिता ८०-८३; वर्धमान नीति २ – ४; इन्द्र० जि० सं० ३२ – ३४; ग्रह ० ६६-७३; त्रिवर्णाचार | ६; नीतिवाक्यामृत अध्याय ३१ ) । इनमें कहीं कहीं विरोध भी पाया जाता है जो श्रनुमानतः कानून को काव्य अर्थात् पद्य में लिखने के कारण हो गया है । क्योंकि काव्य-रचना कानून लिखने के लिए उचित रीति नहीं है
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( २ ) देखो उपर्युक्त प्रमाण नं० १ ।
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