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प्रास्ताविक
[ भाग 1 वहीं दूसरी ओर उनमें भी उस प्रदेश की तत्कालीन शैली को अपनाया गया है जहाँ इनका निर्माण हुआ।
मोहन-जो-दड़ो से प्राप्त मुहर (खड़िया मिट्टी की मुद्रा) पर उकेरी कायोत्सर्ग मूर्ति पर यदि हम अभी विचार न करें तो भी लोहानीपुर की मौर्ययुगीन तीर्थंकर प्रतिमाएँ (अध्याय ७) यह सूचित करती हैं कि इस बात की सर्वाधिक संभावना है कि जैनधर्म पूजा-हेतु प्रतिमाओं के निर्माण में बौद्ध और ब्राह्मणधर्म से आगे था। बौद्ध या ब्राह्मण धर्म से संबंधित देवताओं की इतनी प्राचीन प्रतिमाएँ अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं, यद्यपि इन धर्मों की समकालीन या लगभग समकालीन यक्ष-मूर्तियाँ प्राप्त हई हैं, जिनकी शैली पर लोहानीपूर की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। महावीर के समय में इस प्रकार की मूर्तियाँ बनाने की प्रथा थी, इसका प्रमाण नहीं मिल सका है। स्वयं महावीर के समकालीन वीतभयपत्तन के नृपति उद्दायन की रानी (जिसके बारे में अन्य किसी स्रोत से हमें जानकारी नहीं है) चन्दनकाष्ठ से निर्मित तीर्थकर (अध्याय ८) की पूजा करती थीं। इस आख्यान का प्रतिरूप बुद्ध के समकालीन कौशाम्बी के उदयन संबंधी आख्यान में मिलता है कि उसने इसी सामग्री से निर्मित' बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की थी। यहाँ तक कि दोनों शासकों के नामों की साम्यता भी संभवतः आकस्मिक न हो।
मथुरा से प्राप्त तीर्थंकरों और यक्षियों की परवर्ती मूर्तियाँ उत्कर्षशील मथुरा शैली की विशिष्ट कृतियाँ हैं। उनमें प्रतिमा-निर्माण विषयक जो भी साङ्गोपाङ्गता पायी जाती है, उसे छोड़कर उनमें ऐसी कोई भिन्न बात नहीं है जो उन्हें अन्य संप्रदायों की समकालीन मूर्तियों से, शैली की दृष्टि से, पृथक् सिद्ध करे। यही बात अन्य सभी प्रदेशों और परवर्ती शताब्दियों की कला पर भी लागू होती है।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि मथुरा में भी यक्षियों की मूर्तियों में हम प्रतिमा-निर्माणविषयक सामान्य रूप-विन्यास-विवरण ही पाते हैं, किन्तु वे परवर्ती युगों में विकसित होते जाते हैं। तीर्थंकरों की मूर्तियों में इस प्रकार के विवरण अधिकांशतः चिह्नों (लांछनों) और यक्ष-यक्षियों को सम्मिलित करने तक सीमित हैं। ये चिह्न पहचान के लिए होते हैं। इनके प्रयोग के संबंध में गुप्तयुग में भी विभिन्नता रही है। तीर्थंकरों की परिकल्पना में उत्कट संयम का समावेश है अत: उनकी मूर्तियों के निर्माण में अलंकरण की गुंजाइश नहीं रहती, किन्तु सादगी की यह बात सामान्यतः बुद्ध प्रतिमाओं के बारे में भी सही है। तो भी, अलंकरण की यह इच्छा महावीर की जीवन्तस्वामी प्रतिमा की एक नयी संकल्पना करके पूर्ण की गयी। इसी प्रकार की कल्पना का उदाहरण पूर्वी भारत की बुद्ध की मुकुटधारी मध्यकालीन प्रतिमा है।
1 बील (सेमुअल). बुद्धिस्ट रिकार्ड्स ऑफ़ द वेस्टर्न वर्ल्ड. 1. 1884. लन्दन. पृ 235./ व्ही-ली. लाइफ़ ऑफ़
हनसांग. 1882. लन्दन. पृ 91.
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