Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 1
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 291
________________ प्रध्याय 15 ] पूर्व भारत रखी गयी या वहीं की शैलभित्तियों पर उत्कीर्ण की गयी मूर्तियों की स्थापना द्वारा गुफा-मंदिर का रूप दिया गया। ऐसी एक गुफा (गुफा सं० ७, नवमुनि) के बरामदे के सरदल पर भीतर की ओर सोमवंशी शासक उद्योतकेसरी (ग्यारहवीं शती) का एक अभिलेख है; उसमें देशि-गण के कुलचन्द्र के शिष्य मुनि खल्ल शुभचन्द्र का उल्लेख है। मूर्तियों की समृद्ध संपदा के कारण इस गुफा का महत्त्व और भी बढ़ गया है। पीछे की भित्ति पर एक ही पंक्ति में स्थूल उभार में उत्कीर्ण सात तीर्थकर-मूर्तियाँ और नीचे एक पंक्ति में उत्कीर्ण उन सातों की शासनदेवियाँ कलागत और प्रतिमाशास्त्रीय विशेषताओं के कारण ध्यान देने योग्य हैं। यहाँ उत्कीर्ण तीर्थंकर और उनकी शासनदेवियाँ अग्रलिखित हैं : ऋषभदेव और चक्रेश्वरी; अजितनाथ और रोहिणी; संभवनाथ और प्रज्ञप्ति; अभिनंदन और वज्रश्रंखला; वासुपूज्य और गांधारी; पार्श्वनाथ और पद्मावती तथा नेमिनाथ और आम्रा । यह उल्लेखनीय है कि शासनदेवियों की पंक्ति के प्रारंभ में गणेश की एक मूर्ति इसके अतिरिक्त दायीं भित्ति पर ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की दिगंबर मूर्तियाँ हैं। वे पूर्ण उभार के शिल्पांकनों में हैं और उनके साथ शासनदेवियाँ नहीं हैं। इन तीर्थंकर-मूर्तियों में सभी परंपरागत लक्षण हैं; यथा, छत्रत्रय, दोनों ओर करताल बजाते हस्त-युगल और चमरधारी अनुचर । किन्तु उनमें से किसी के भी पीछे प्रभामण्डल और वक्ष पर श्रीवत्स-चिह्न नहीं है । केशविन्यास भिन्न-भिन्न प्रकार का है। सुंदर आभूषणों से अलंकृत शासनदेवियाँ धोती और पारदर्शी दुपट्टे धारण किये हए हैं जो उनके शरीर के ऊपरी भाग और बायें कंधों को ढंकते हैं। कुशलता से उत्कीर्ण की गयी ये मूर्तियाँ दसवीं / ग्यारहवीं शताब्दी की हो सकती हैं। इसके पास की गुफा सं० ८ (बारभुजी) वास्तव में मूर्तियों का एक विविधतापूर्ण कोषागार है, जो पूर्वोक्त गुफा से कुछ परवर्ती अवधि की हो सकती है। इस गुफा का नाम बारभुजी इसलिए पड़ा कि उसके बरामदे की पार्श्व-भित्तियों पर दो बारह भुजाओंवाली शासनदेवियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं, इनमें से एक ऋषभनाथ की चक्रेश्वरी और दूसरी अजितनाथ की रोहिणी है। गर्भगृह की भित्तियों पर तीर्थंकरों की पच्चीस मूर्तियाँ और एक समूह में उनकी शासनदेवियाँ उत्कीर्ण हैं (चित्र ८६ और ८७), इनमें से पीछे की भित्ति पर पार्श्वनाथ की एक अतिरिक्त मूर्ति उत्कीर्ण है, पर उसके साथ शासनदेवी नहीं है। इस समूह में कुछ तीर्थंकरों के लांछन शास्त्रोक्त लांछनों से भिन्न हैं और किसी भी मूर्ति के वक्ष पर श्रीवत्स-चिह्न नहीं है। प्रचुरता से अलंकृत शासनदेवियाँ संबद्ध तीर्थंकरों के नीचे 1 मित्रा (देबला). उदयगिरि एण्ड खण्डगिरि. 1960. नयी दिल्ली, पृ 53 तथा परवर्ती./ बेहरा, पूर्वोक्त, पृ 170. 169 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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