Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 1
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 336
________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई० [ भाग 4 मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। मध्यभाग की रूपरेखा कुडु तोरण की है जिसके शीर्ष पर उद्गम रूप का अर्धतोरण है । ऊपर के बालों में तीर्थंकरों की तीन पद्मासन मूर्तियाँ हैं जिनके दोनों ओर चमरधारी हैं। प्रवेशद्वार के दोनों पक्षों के आधार-भाग में द्वारपाल फलक हैं। गर्भगृह में सिंहासन पर प्रतिष्ठित महावीर की मूर्ति है, जिससे गर्भगृह के पीछे का अर्धाधिक क्षेत्र घिर गया है। दोनों मण्डपों के सिरों की भित्तियों के पालों में गोम्मटेश्वर (चित्र ११४ क) एवं तीर्थंकरों - पार्श्वनाथ (चित्र ११५) तथा आदिनाथ (चित्र ११४ ख) इत्यादि - की मूर्तियाँ हैं जिनके चतुर्दिक प्रभावली है जिसमें चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। चार मूर्तियाँ ऊपरी भाग में, अठारह लघ मूर्तियाँ पावों में ओर नौ-नौ, तथा शेष दो अपेक्षाकृत बड़ी और कायोत्सर्ग मूर्तियाँ प्रभावली के स्तंभ-तोरण के प्रत्येक आधार-भाग में उत्कीर्ण हैं । मुख्य प्रतिमा के दोनों ओर यक्ष-यक्षी शासनदेवता के रूप में विद्यमान हैं । परवर्ती मूर्तियाँ, जो खड्गासन-मुद्रा में हैं अधिकांशतः तीर्थंकरों की हैं स्तंभों और भित्ति-स्तंभों के चतुर्दिक छेनी से कुरेदकर या उकेरकर खोखला करने की विधि से बनायी गयी हैं। कुछ उदाहरणों में स्तंभों के शीर्षभाग का संपूर्ण क्षेत्र जड़े हुए गोमेद रत्नों की भाँति तीर्थंकरों लघु मूर्तियों से मण्डित है जिसमें महावीर की अपेक्षाकृत बड़ी मूति केन्द्रीय भाग में उत्कीर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि गुफामंदिर के निर्माणोपरांत अधिक अलंकरण हेतु ये सज्जाएं की जाती थीं। ऐहोले किसी समय एक वाणिज्य-प्रधान महानगर एवं 'अनिन्द्य पंचशतों' का प्रमुख केंद्र था। यहाँ की मेगुटी पहाड़ी के दक्षिण-पूर्वी भाग में मेनावस्ति जैन गुफा-मंदिर (चित्र ११६ क) है। यह सातवीं शती के अंत तथा आठवीं शती के प्रारंभ में तनिक भिन्न संरचनात्मक योजनानुसार बना था। यहीं के रावलगुडी ब्राह्मण्य गुफा-मंदिर के सदृश इसमें भी सादे वर्गाकार अंतरालयुक्त स्तंभों के पीछे एक संकीर्ण मण्डप है। स्तंभों के केन्द्रीय अंतराल को छोड़ कर शेष को चौकोर प्रस्तर-खण्डों द्वारा बंद कर दिया गया है। मण्डप की बायीं पार्श्व भित्ति पर पार्श्वनाथ की मूर्ति अपने शासनदेवों - धरणेंद्र एवं पद्मावती - तथा अन्य अनुचरों के साथ उत्कीर्ण है। अंत:मण्डप वर्गाकार कक्ष की भाँति है जिसमें दो पार्श्व मंदिर हैं जो इसकी पार्श्व भित्तियों में उकेरकर बनाये गये हैं । महावीर को समर्पित बायीं ओर का मंदिर वस्तुत: अपूर्ण है। इसमें कई परिचारकगण भी हैं जो अर्धनिर्मित प्रतीत होते हैं। पिछले मंदिर में प्रवेश के लिए दो स्तंभों से निर्मित तीन अंतःमार्ग हैं जिनके सम्मुख ऐलीफेंटा शैली के समरूप ऊँची पगड़ीवाले दो द्वारपाल एक वामन पुरुष तथा स्त्रीअनुचर के साथ खड़े हैं। बादामी गुफा-मंदिर के सदृश इस मंदिर में महावीर की पद्मासन प्रतिमा है। ऐहोले की इस पहाड़ी की अधित्यका के ठीक नीचे और मेगुटी मंदिर के निकट ही एक और द्वितल गुफा-मंदिर है जिसका कुछ भाग निर्मित रचना है तथा कुछ शैलोत्कीर्ण (चित्र ११६ ख); या यह भी हो सकता है कि इस रूप में यह प्राकृतिक गुफा ही हो। इसमें दो ऊपर से बनाये गये मण्डप हैं जिनमें से प्रत्येक के आगे चार स्तंभ, दो वर्गाकार भित्ति-स्तंभ और सादी वक्र धरनें हैं। ऊपरी मण्डप की छत के मध्य में वस्त्रधारी तीर्थंकर की लघु मूर्ति पद्मासन-मुद्रा में उत्कीर्ण है जिसके 194 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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