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अध्याय 18 ]
दक्षिणापथ शीर्ष पर छत्र-त्रय है। 'उसी मण्डप के एक सिरे पर एक लम्बा कक्ष है जिसमें प्रांशिक रूप में शैलोत्कीर्ण तीन मंदिर हैं और थोड़ा नीचे की ओर एक और मंदिर प्रारंभिक स्थिति में है। निचले तल के गर्भगृह की ओर जानेवाले द्वार की चौखट, अलंकृत बहुशाखा प्रकार की हैं। इसकी रूपरेखा लगभग मेनाबस्ति मंदिर के सदृश है तथा पशु, मानव, एवं पत्रपुष्पादि के चित्रण से विशुद्ध रूप में सज्जित है। द्वार-चौखट के उत्तरांग पर दक्षिण शैली में लघु मंदिर भी अंकित किये गये है। स्तंभों
और बाहर की चट्टान पर उत्कीर्ण अभिलेखों में अधिकांशत: व्यक्तियों के नाम मात्र हैं। इन अभिलेखों तथा वास्तु शैली से इस गुफा-मंदिर की तिथि सातवीं शती निर्धारित की जा सकती है।
मेगटी पहाड़ी की पश्चिमी ढलान पर शैलोत्कीर्ण छोटे-से जैन मंदिर में मुख्यतः गर्भगृह और एक सादा मुखमण्डप है। मंदिर का प्रवेशद्वार त्रिशाख शैली का है जिसके द्वारा मुखमण्डप में होते हए गर्भगृह में प्रवेश किया जा सकता है। मूर्ति के पादपीठ के मुखभाग पर अंकित सिंह-प्रतीक तथा अन्य विवरणों से प्रतीत होता है कि गतिका में प्रस्थापित पद्मासन मूर्ति महावीर की थी जो अब नष्ट हो गयी है। पूर्वोक्त द्वितल मंदिर की भाँति इस मंदिर की तिथि भी सातवीं शताब्दी मानी जायेगी।
राष्ट्रकट नरेशों के सत्ता-ग्रहण के साथ-साथ स्थापत्य कला की गतिविधि का प्रमुख केन्द्र एलापुर या एलोरा की ओर हो गया था। एलोरा में उत्कीर्ण बौद्ध तथा ब्राह्मण्य गुफाओं के पश्चात् शैलोत्कीर्ण जैन गुफा मंदिरों की एक श्रृंखला है, साथ ही यहाँ इकहरे, शिलाखण्ड पर उत्कीर्ण विमान की प्रतिकृति, पूर्ववर्ती तथा विशाल ब्राह्मण्य कैलास की अनुकृति पर बनाया गया 'छोटा कैलास', तथा इसकी और भी छोटी अनुकृति इंद्रसभा के प्रांगण में है। एलोरा की गुफाओं में ऐसी शैलोत्कीर्ण जैन गुफाओं की संख्या ३० और ४० तक है, जो एलोरा पहाड़ी के उत्तरी भाग में हैं और दुमलेंना नामक विशाल ब्राह्मण्य गुफा से लगभग १२०० मीटर उत्तर में हैं। यह गुफा-मंदिर निर्माण की विभिन्न स्थितियों में मिलते हैं। इनकी रूपरेखा, शैली और अभिलेखों से स्पष्ट है कि ये मंदिर आठवीं शताब्दी के अंत अथवा नौवीं शताब्दी के प्रारंभ में उत्कीर्ण किये गये थे और बाद में भी इनका निर्माण-कार्य चलता रहा था।
जैन मंदिर-श्रृंखला में इंद्रसभा (गुफा ३२) एवं जगन्नाथसभा (गुफा ३३) विशेष उल्लेखनीय और भव्य हैं। इनमें सर्वप्रथम निर्मित इंद्रसभा (चित्र ११७) सबसे बड़ा दक्षिणमुखी द्वितल मंदिर है। यह मंदिर शैल स्थापत्य कला का विशिष्ट नमूना है, जो वास्तव में एक मंदिर न होकर, मंदिरसमूह ही है । द्वितल गुफा के समक्ष प्रांगण में अखण्ड शिला का विमान है जिसकी पूर्व दिशा में सामने की ओर एक हाथी बना है। और पश्चिम में कुंभ-मण्डित-कलश शैली का मानस्तंभ है, जिसके शिखर पर चतुर्दिक ब्रह्म यक्ष की प्रतिमाएं हैं। प्रोट-भित्ति के गोपुर द्वार से प्रांगण में प्रवेश किया जा सकता है। खुले हुए उत्कीर्ण प्रांगण की पार्श्व भित्तियों में एक ओर दो लघु स्तंभीय मण्डप उत्कीर्ण किये गये हैं और दूसरी ओर एक अर्धनिर्मित वीथी है। इनमें पार्श्वनाथ (चित्र ११८ क), गोम्मट (चित्र ११८ ख)
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