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श्रध्याय 18 ]
दक्षिणापथ
मुख्य कक्ष के दक्षिण-पश्चिमी कोने पर सुमतिनाथ को अर्पित वैसे ही तथा बहुत सुंदर चित्रों से सज्जित एक और मंदिर है जहाँ के चित्र उपर्युक्त मंदिर की भाँति सुरक्षित नहीं रह पाये हैं । इस मंदिर के उत्खनन की चित्ताकर्षक विशेषता इसके अग्रभाग के कपोत हैं जो निचले तल को ऊपरी तल से अलग करते हैं और ऊपरी तल के ऊपरी आवेष्टन का काम देते हैं । कपोत उत्कृष्ट शिल्पांकनयुक्त हैं । निचले कपोत पर सिंह और हाथी तथा ऊपरी कपोत पर तीर्थंकर प्रतिमाओं से युक्त लघु मंदिरों की शिल्पाकृतियाँ हैं । आँगन में बने अखण्ड शिला विमान की चर्चा आगे की जायेगी ।
जगन्नाथ - सभा ( गुफा ३३, चित्र १२० क ) इंद्र-सभा के समान ही है, किंतु रूपरेखा सुव्यवस्थित नहीं है । भूमितल पर तीन क्रमहीन गर्भगृहों का एक समूह है। प्रत्येक अपने में एक इकाई है, जिसमें अग्र तथा महामण्डप हैं । श्राँगन की ओर खुलनेवाला मुख्य गर्भगृह ढह चुका है जिससे दक्षिणमुखी प्रवेशद्वारयुक्त प्राकार भित्ति तथा मध्य मण्डप के अवशेष नाममात्र ही दृष्टिगोचर होते हैं । इस तल पर चार स्तंभों का सामान्य मुखमण्डप है तथा दोनों ओर कुबेर ( ? ) ( चित्र १२१) और सिंह पर आरूढ़ अंबिका ( चित्र १२२ ) है । पिछला कक्ष वर्गाकार है । उसकी प्रत्येक पार्श्व भित्ति पर एक विशाल देवकुलिका है । इन देवकुलिकाओं में तथा उनकी पार्श्व भित्तियों पर गोम्मट, पार्श्वनाथ और अन्य तीर्थंकरों (चित्र १२३) की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । सुमतिनाथ को समर्पित पृष्ठभाग के मंदिर में एक मुखमण्डप है । इस तल के स्तंभ दो प्रकार के हैं- कलश-शीर्ष-युक्त एवं कुम्भवल्लि - कलश-शीर्षयुक्त ( चित्र १२५ ) । अपने सूक्ष्म शिल्पांकनों तथा अन्य विशेषताओं के कारण यह गुफा परवर्ती तिथि की प्रतीत होती है । इस तल के अन्य दो गर्भगृहों की रूपरेखा और साज-सज्जा भी लगभग एक समान है ।
दूसरे तल पर पहुँचने के लिए इंद्र-सभा मंदिर समूह की पार्श्व भित्ति के ऊपरी मंदिर के दक्षिण - पूर्वी कोने में से चट्टान काटकर सीढ़ियाँ बनायी गयी हैं। ऊपरी तल अधिक सुरक्षित एवं उत्कृष्ट है । इसमें बारह विशाल स्तंभोंवाला नवरंग कक्ष है । इंद्र-सभा के सदृश बीच में चार और दोनों ओर आठ स्तंभ हैं । कुछ स्तंभों में वर्गाकार आधार एवं कलश शीर्ष हैं। सभी स्तंभ अत्यंत अलंकृत हैं। मंदिर के पृष्ठभाग में एक सुसज्जित प्रवेशद्वार है जिसके दोनों ओर तीर्थंकर - मूर्तियाँ हैं । मूर्तियों के दोनों ओर कुबेर और अंबिका हैं । पार्श्व भित्तियों पर तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, और कक्ष की छत पर प्राचीन चित्रकला के अवशेष भी दृष्टिगोचर होते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि मण्डप की छत के मध्यभाग में वृत्ताकार चित्रांकन था जिसमें समवसरण प्रदर्शित किया गया था । अब इसका अंशमात्र ही शेष है ।
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मण्डप के पूर्वी छोर पर एक कोने में एक छोटा मंदिर है जो रूपरेखा में निचले तल के मंदिर भाँति है, किंतु अधिक संपूर्ण एवं प्रचुर शिल्पांकन युक्त है ।
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