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अध्याय 16 ]
मध्य भारत
मंदिरों में सर्वाधिक संरक्षित मालादेवी मंदिर के नाम से विख्यात जैन मंदिर है, जो वास्तव में प्रतीहार वास्तुकला के चरम विकास का प्रतीक है।
मंदिर
मालादेवी मंदिर, ग्यारसपुर :
मालादेवी मंदिर एक सांधार-प्रासाद है जिसका कुछ भाग शैलोत्कीर्ण तथा कुछ भाग निर्मित रचना है। यह मंदिर मुखमण्डप, मण्डप, अंतराल तथा सांधार-गर्भगृह से युक्त है (चित्र १०१ तथा १०२) । गर्भगृह की रूपरेखा पंच-रथ प्रकार की है तथा इसके ऊपर रेखा-शिखर है (चित्र १०३)।
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मंदिर का पीठ सुदृढ़ और सामान्य गोटा-अलंकरणों से युक्त है । यह जंघा को आधार प्रदान किये हुए है। जंघा-भाग कक्षासन तथा देवकोष्ठों से मण्डित है (चित्र १०४)। आयताकार प्रासाद के लघुतर बाहों में दो कक्षासन हैं जबकि लंबे बाहों में ऐसे ही तीन-तीन गवाक्ष हैं जिनमें से दो मण्डप और एक गर्भगृह से प्रक्षिप्त हैं। ये गवाक्ष मुख्यतः अलंकरण के लिए बनाये जाने के कारण अत्यंत अल्प प्रकाश ही भीतर पहुँचने देते हैं।
दक्षिण दिशा में मंदिर के छह निर्गम हैं जिनमें से तीन बड़े हैं और तीन छोटे । ये सभी देवकोष्ठों द्वारा अलंकृत हैं जो जंघा तथा पीठभागों पर हैं। जंघा पर निर्मित देवकोष्ठों में तथा यक्ष-यक्षियों की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं जबकि पीठों की शिल्पांकित फलकों पर मानव-मुखाकृतियाँ तथा बेल-बूटे प्रचुर मात्रा में अंकित हैं।
मंदिर का शिखर पंच-रथ प्रकार का है जिसकी आकृति त्रिभुजाकार प्रतीत होती है। शिखर के चारों ओर आठ शिखरिकाएँ बनी हैं। मण्डपों की छतें ध्वस्त हो चुकी हैं फिर भी अवशिष्ट अंशों से ज्ञात होता है कि वे निस्संदेह फानसना बने थे और इनमें पीढ़े तथा रत्नों से अलंकृत कंठों का तारतम्य दर्शनीय है।
दक्षिण दिशा में शिखर-मूल पर निर्मित (रथिका) में गरुड़ासीन अष्टभुजी चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा स्थापित है । देवी के अवशिष्ट दो दाहिने हाथों में पाश और वज्र हैं तथा बायीं ओर के दो अवशिष्ट हाथों में वज्र और चक्र । देवी के पार्श्व में दोनों ओर परिचारिकाएँ हैं। इसके ठीक बायीं ओर की रथिका में पद्मासनस्थ तीर्थंकर-प्रतिमा है, जबकि दायीं ओर की रथिका में शिशुसहित अंबिका यक्षी ललितासन में बैठी है। तदनुरूप उत्तर दिशा की रथिकानों में चक्रेश्वरी यक्षी की प्रतिमाएँ परिचारिकाओं सहित अंकित हैं। इसके ठीक दाहिनी रथिका में एक पदमासनस्थ तीर्थंकर
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