Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 1
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 333
________________ अध्याय 18 दक्षिणापथ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि विंध्याचल से दक्षिणवर्ती भारत के इतिहास में छठी शती के उत्तरार्ध से ग्यारहवीं शती तक पाँच सौ वर्ष लंबा समयांतराल अत्यंत घटनाशील रहा है क्योंकि इस काल में मंदिर स्थापत्य तथा मूर्ति, चित्र एवं अन्य संबद्ध कलाओं का उद्भव और विकास अपने चरम उत्कर्ष पर जा पहुँचा, विध्य सीमा से पार यह दक्षिणवर्ती भू-भाग तीन उन्नत राज्यों की सार्वभौमिकता में आता था - दक्षिणापथ में 'चालुक्य राज्य जिसकी राजधानी वातापी ( बादामी ) थी, पूर्ववर्ती तटीय क्षेत्र में पल्लव राज्य जिसकी राजधानी कांची थी एवं सुदूर दक्षिण में पाण्ड्य राज्य जिसकी राजधानी मदुरै थी। तीनों राज्य न केवल राजनीति वरन् स्थापत्य, मूर्ति, चित्र, संगीत तथा नृत्य कलाओं और साहित्य में भी परस्पर प्रतिद्वन्द्वी थे । एक ओर जहाँ चालुक्य नरेश पुलकेशी (६०६-४२ ) ने हर्षवर्धन के दक्षिणी राज्य - विस्तार को सफलतापूर्वक रोके रखा, वहीं दूसरी ओर पल्लव राजा नरसिंहवर्मन प्रथम मामल्ल (६३०-६८) ने पुलकेशी को परास्त करके बारह वर्ष तक वातापी को अपने अधीन रखा । उधर पाण्ड्य नरेश पल्लव राजाओं के दक्षिणी विस्तार को रोकने के साथ-साथ निकटवर्ती श्रीलंका में अपनी राज्य सत्ता फैलाने में सफल हो गये थे । पूर्वी चालुक्य, राष्ट्रकूट, गंग, मुत्तरैयार, नोलंब, इरुक्कुवेल - जैसे छोटे-छोटे राज्य बड़े राज्यों के मित्रराष्ट्र या उनके अंतस्थराज्य के रूप में विभाजित थे । इन राज्यों का भी तत्कालीन कलात्मक एवं साहित्यिक परंपराओं और उपलब्धियों में अपना योगदान रहा । जब पल्लव और पाण्ड्य सत्ताएँ नौवीं शती के मध्य तक अपने-अपने क्षेत्रों में प्रखंड प्रभुत्व संपन्न बनी रहीं, वातापी के चालुक्य राजाओं में सत्ता का विभाजन हो गया था । पुलकेशी- द्वितीय के अंतिम दिनों में उसके भाई कुब्ज विष्णुवर्धन ( ६२४-४१ ) ने चालुक्य राज्य से पृथक् होकर आंध्र के तटीय क्षेत्रों में स्वतंत्र सत्तावान पूर्वी या वेंगी चालुक्य राज्य स्थापित किया था । इसके उपरांत वातापी की राज्य सत्ता आठवीं शती के मध्य में राष्ट्रकूट राजानों के हाथ में चली गयी, जिन्होंने मान्यखेट (मलखेड) को अपनी राजधानी बनाया। दूसरी ओर, नौवीं शती के मध्य में सुदूर दक्षिण की पल्लव एवं पाण्ड्य सत्तानों पर तंजौर के चोल सम्राटों ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया । ग्यारहवीं शती के आगमन तक दक्षिण में सार्वभौम सत्ता और कला एवं स्थापत्य के सृजन के लिए केवल दो ही प्रतिद्वंद्वी थे - राष्ट्रकूट एवं चोल राज्य; वेंगी चालुक्य राज्य की स्थिति तुलनात्मक दृष्टि से गौण थी । Jain Education International 191 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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